षष्टम चरण (श्रीरामचरितबखान)-4
अस सुनि दसकंधर घबराना।
उठि कह तनि तुम्ह मोंहि बताना।
का बाँधे ऊ उदधि-नदीसा।
संपति सिंधुहिं,जलधि बरीसा।।
बनहिं-पयोधि,तोय-निधि बाँधा।
मोंहि बताउ नीर-निधि साधा।।
तब खिसियान बिहँसि गृह गयऊ।
भय भुलाइ जनु कछु नहिं भयऊ।।
बाँधि पयोधि राम इहँ आयो।
सुनि मंदोदरि चित घबरायो।।
रावन-कर गहि ला निज गेहू।
कहा नाथ रखु रामहिं नेहू।।
कीजै नाथ बयरु तिन्ह लोंगा।
बल-बुधि-तेज रहै जब जोगा।
उदितै चंद्र खदोत न सोहै।
रबि-प्रकास महँ ससि नहिं मोहै।।
स्वामी तुम्ह खद्योत समाना।
दिनकर-तेज राम भगवाना।।
मधु-कैटभ रघुबीर सँहारे।
हिरनकसिपु-हिरनाछहिं मारे।।
बामन-रूप धारि रघुबीरा।
बाँध्यो नाथ बलिहिं रनधीरा।।
सहसबाहु प्रभु रामहिं मारे।
परसुराम बनि धरनि पधारे।।
सो प्रभु हरन धरनि कै भारा।
आयो जगत लेइ अवतारा।।
तेहिं सँग नाथ बिरोध न कीजै।
हठ परिहरि तिन्ह सीता दीजै।।
काल-करम-जिव राम के हाथहिं।
तिसु बिरोध तुम्ह सोह न नाथहिं।।
तजि निज क्रोध सौंपि सुत राजहिं।
करउ गमन-बन भजु तहँ रामहिं।।
दोहा-संत बचन अस कहत अहँ, सुनहु नाथ धरि ध्यान।
चौथेपन नृप जाइ बन,लहहिं परम सुख ग्यान ।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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