डा0 रामबली मिश्र

*प्रेम और आँसू (सजल)* प्रेम और आँसू का बहना। दोनों को संयोग समझना।। कोई नहीं बड़ा या छोटा। विधि का इसे विधान जानना।। प्रेम बुलाता है आँसू को। बिन आँसू के प्रेम न करना।। आँसू नहीं अगर आँखों में। होता नहीं प्रेम का बहना।। जिसने प्रेम किया वह रोया। इसको शाश्वत नियम समझना।। आँसू से ही प्रेम पनपता। आँसू लिये संग में चलना।। आँसू है तो दुनिया तेरी। बिन आँसू के सब कुछ सपना।। आँसू बिना प्रेम घातक है। इसे प्रेम का मर्म समझना।। प्रेम हॄदय का शुद्ध विषय है। यह कोमल मधु क्षेत्र परगना।। कोमल मन-उर में शीतलता। हृदय देश से जल का बहना।। प्रेम गंग सागर अति निर्मल।। बनकर आँसू चक्षु से बहना।। चक्षु क्षेत्र गंगा सागर तट। प्रेम-अश्रु की धार समझना।। प्रेम-अश्रु का जहँ अभाव है। उसको दानव देश समझना।। बड़े भाग्य से आँसू बहता। जग की चाह प्रेम का झरना।। झरने से आँसू की बूँदों। का हो नित्य प्रेमवत झरना।। रचनाकार:डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी 9838453801 *हुआ प्रेम...* हुआ प्रेम नियमित जरा धीरे-धीरे। बहकता गया मन बहुत धीरे-धीरे।। भरने लगीं कल्पना की उड़ानें। उड़ता गया मैं जरा धीरे-धीरे।। फिसलता रहा पग संभलता रहा भी। पिघलता रहा दिल जरा धीरे-धीरे।। बनकर दीवाना चला तोड़ बंधन। सीढ़ी-दर-सीढ़ी चढ़ा धीरे-धीरे।। रचनाकार:डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी 9838453801

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...