मुक्तक
चलो चलें गाँवों की ओर,
बहे पवन शीतल-निर्मल।
प्रकृति-छटा बिखरी हर छोर,
नदी बहे कल-कल,छल-छल।।
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खेतों की हरियाली देख,
कटे कष्ट सारे तन के।
पढ़कर प्राकृत अनुपम लेख,
मिटें शूल अंतर्मन के।।
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चहुँ-दिशि पसरा अमृत-घोल,
प्रभु का मिले प्रसाद वहाँ।
रहे न जिसका कोई मोल,
मिटे सकल अवसाद जहाँ।।
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मीठे वचन भरे सब घाव,
रहे एकता सब जन में।
नहीं प्रेम का यहाँ अभाव,
त्याग-भाव सबके मन में।।
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आपस में है रहता मेल,
रहता नहीं यहाँ दुराव।
कोई नहीं सियासी खेल,
पाते सभी उचित सुझाव।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
ग़ज़ल
*ग़ज़ल*
मैं ख्वाहिशों के दीप, जलाता चला गया,
मायूसियों को दिल से भगाता चला गया।।
कष्टों के जब भी बादल,छाते रहे गगन,
मैं बारिशों का जश्न मनाता चला गया ।।
आता रहा तूफ़ान था न फिर भी कोई ग़म,
मैं मुश्किलों से हाथ मिलाता चला गया ।।
राहें भी जिंदगी की, रहतीं रहीं कठिन,
मैं पत्थरों पे पाँव बढ़ाता चला गया ।।
आयी बला तो दोस्त भी,दिए न साथ तो,
मैं दुश्मनों को दोस्त बनाता चला गया।।
ख्वाहिशें ही ज़िंदगी की, राह सँवारें,
ख्वाहिशों को दिल में बसाता चला गया।।
आतीं तो हैं उदासियाँ,आतीं ही रहेंगीं,
उदासियों की रेख मिटाता चला गया।।
जब भी पड़ी है धूल, इज़्ज़त पे मुल्क़ की,
बेग़ैरतों को धूल चटाता चला गया ।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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