डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 षष्टम चरण(श्रीरामचरितबखान)-9

तब सभ गे झुकाइ निज माथा।

होइ बिनीत लंकपति नाथा।।

     पर नहिं चैन मँदोदरि मन महँ।

      सोचै बिकल घुमरि सो जहँ-तहँ।।

नयनन नीर दोउ कर जोरे।

कहा नाथ बड़ चिंता मोरे।।

     तजहु राम सँग निज रिपुताई।

     देइ सीय तिन्ह करउ मिताई।।

राम अहहिं सुनु बिस्वस्वरूपा।

सकल लोक प्रभु-रूप अनूपा।।

     कह अस बेद, करउ बिस्वासा।

     होई मुक्ति रखहु तुम्ह आसा।।

चरन पताल, ब्रह्म प्रभु-सीसा।

भृकुटि काल,रबि सम जगदीसा।।

       अस्विन कुमारइ राम-नासिका।

        दस दिसि अहहीं श्रवन-तंत्रिका।।

कारे जलद राम कर केसा।

रात्रि-दिवस प्रभु-पलक निमेसा।।

     पवनइ स्वांस,निगम प्रभु-बानी।

      सुनहु नाथ अस बेद बखानी।।

लोभ अधर,जमराजहि दंता।

माया हँसी व बाहु दिगंता।।

     प्रभु-मुख अनल,बरुन प्रभु-जिह्वा।

     रचना-पालन-नास अपुर्वा।।

अठरह अगनित बनजहिं रोमा।

अस्थि नाथ सभ पर्बत-खोमा।।

     प्रभु-तन-नस सरिता महि अहहीं।

     सिंधु उदर नरकेंद्रिय अधहीं।।

ब्रह्मा बुधि, अभिमानहिं संकर।

चित्त बिष्नु,मन चंद्र मयंकर।।

      अस प्रभु राम चराचर बासा।

      मनुज-रूप जग करहिं निवासा।।

अस रामहिं सँग करउ मिताई।

तजि रिपुता अहिवात बचाई।

     श्रवन लगहिं तव बचन सुहाने।

      कह रावन मम चितहिं अघाने।।

निसि बीती अस करत बिनोदा।

गया सभा पुनि रावन मोदा।।

दोहा-सुधा न बरसहिं कबहुँ घन, लागै फर नहिं बेंत।

         खरहिं पढ़ावउ बेद बरु,वाको हृदय न चेत।।

                           डॉ0हरि नाथ मिश्र

                            9919446372

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