डॉ0हरि नाथ मिश्र

षष्टम चरण(श्रीरामचरितबखान)-16 मत बतकुच्चन करउ तु रावन। अमल करउ बस मोर सिखावन।। छाँड़ि कलह अब करउ मिताई। यहि मा बस अह तोर भलाई।। मारि सियार सिंह नहिं सोहै। गज चढ़ि उल्लू साह न मोहै।। जौं मैं नहिं मनतेउँ प्रभु-कथनी। पीसि क तोर बनौतेउँ चटनी।। मुँह तोहार कूँचि क बुढ़ऊ। तोर भवन उजारि जहँ रहऊ।। मातु जानकी लइ निज संगा। जुवतिन्ह सकल लेइ करि दंगा।। जातउँ मैं इहँ तें बरजोरी। बिनु कछु सुने गुहार-चिरौरी।। प्रभु मानव तुम्ह दानव जाती। यहिं तें सहहुँ तोर बड़ बाती।। जौं अस करउँ त प्रभु-अपमाना। जानै तू न मान-सम्माना ।। मारि मृतक अपजस बस मिलई। तुम्ह सम बूढ़-मूढ़ कर बधई।। रोगी-कामी-संत-बिरोधी। कृपन-अघी-निंदक अरु क्रोधी।। तिनहिं बधे मम बड़ अपमाना। यहिं तें मैं प्रभु-कहना माना।। कह रावन सुनु रे कपि मूढ़ा। कहेसि मोंहि तू बहुतै बूढ़ा।। छोट मूहँ बड़ करेसि बतकही। जाके बल तू उछरत अबही।। त्रिया-बिरह दिन-राति डराहीं। पितु बनबास पाइ बन आहीं।। बस नर ऊ बल-तेज बिहीना। जासु प्रताप बिरंचिहिं छीना।। सोरठा-तू बानर न सचेत,जानसि नहिं तुम्ह निसिचरहिं। तव प्रभु राम समेत,खिइहैं सभ मिलि हो मगन।। डॉ0हरि नाथ मिश्र 9919446372

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