प्रेम का पथ
प्रेम गली अति साँकरी, बड़ा विकट है पंथ
पग-पग पर काँटे मिले, कहते सभी ये संत
राम नेह में भीग कर, कबिरा दुलहिन होय
घट-घट दीखै राम ही, दीखत ही सुधि खोय
मीरा प्रेम की बावरी, साँवरे के रंग राचि
जीवन धन अर्पित किया, मोहन प्रीत ही सांचि
मोह,माया सब त्यागकर, चले प्रेम पथ ओर
परमानन्द मिले तभी, करे प्रेम दम्भ छोड़
श्याम प्रीत उर में बसी, वासुदेव सूत जोय
गोपिन की अँखियों बसे, सूझे न दूजा कोय
परम् ब्रह्म भी प्रेमवश, भूले हैं निज रूप
छछिया भर छाछ के लोभ में, नाचे वो चितचोर
श्याम दिवानी राधिका, भोगै प्रेम की पीर
राधा श्याम का नाम ही, ज्यों गंगा को नीर
प्रेम समर्पण भाव है, प्रेम है जीवन राग
प्रेम बिना सब सून है, प्रेम भरे रस भाव।
डॉ0 निर्मला शर्मा
दौसा राजस्थान
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें