लिख रहा हूँ....ग़ज़ल
पूछो न मुझसे मैं क्या लिख रहा हूँ,
तुम्हारे लिए मैं ग़ज़ल लिख रहा हूँ।।
बहुत ही दिनों से तू थी कल्पना में,
तुम्हारे लिए मैं सजल लिख रहा हूँ।।
तुम्हें अक्षरों से विभूषित करूँगा,
मैं दास्ताँ इक नवल लिख रहा हूँ।।
हमेंशा-हमेंशा चमकती रहोगी,
हर्फ़ इश्क़ का मैं धवल लिख रहा हूँ।।
बिठाउँगा तुमको मैं रानी बना के,
सुनो,दास्ताने-महल लिख रहा हूँ।।
पहेली बना प्रश्न जो था अभी तक,
कठिन प्रश्न का आज हल लिख रहा हूँ।
हम जब मिले थे कभी वर्षों पहले,
गिन के वही सारे पल लिख रहा हूँ।।
°©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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