*षष्टम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-12
त्रिया चोराइ धरम अस कैसा।
नीति व कर्म होय तव ऐसा।।
रच्छक तोर दूत कै भच्छक।
कबहुँ न हों भच्छक जन-रच्छक।।
डूबि मरउ चुल्लू भर पानी।
जानउँ मैं सभ तोर कहानी।।
तू नहिं जानसि भुज-बल मोरा।
तुम्ह बड़ मूर्ख बालि कै छोरा।।
गगन-तड़ाग-कमल भुज मोरे।
कीन्ह सयन सिवसंकर छोरे।।
नहिं कोउ जोधा सेन मँझारी।
जीति सकत मोंहें बल भारी।।
अहहिं राम तव त्रिया बिहीना।
अनुजहिं सहित भवा बल-छीना।।
जानउँ बल सुग्रीवहिं तोरा।
बलइ बिभीषन बहुतै थोरा।।
जामवंत मंत्री बल हीना।
तासु आयु ताकर बल छीना।।
जानहिं सिल्प-कर्म नल-नीला।
निपुन न होंहिं करन जुधि-लीला।।
हाँ कपि एकहिं सेन मँझारी।
अह बलवान लंक जे जारी।।
सत्य कहे तुम्ह रावन भाई।
करै उहहि सुगरिव- सेवकाई।।
अचरज मोंहि होय बड़ भारी।
बानर छोटइ लंका जारी।।
रिपुता सम-समान कह नीती।
चाहिअ करन सुनहु जग-रीती।।
तुम्हरो संग राम-रिपुताई।
होगो हानि राम-प्रभुताई।।
दोहा-सुनि अंगद कै अस बचन,दसकंधर कह क्रुद्ध।
बानर-गुन बस इहइ कर,प्रतिपालक-हित जुद्ध।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें