डॉ0हरि नाथ मिश्र

 *षष्टम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-12

त्रिया चोराइ धरम अस कैसा।

नीति व कर्म होय तव ऐसा।।

     रच्छक तोर दूत कै भच्छक।

    कबहुँ न हों भच्छक जन-रच्छक।।

डूबि मरउ चुल्लू भर पानी।

जानउँ मैं सभ तोर कहानी।।

    तू नहिं जानसि भुज-बल मोरा।

     तुम्ह बड़ मूर्ख बालि कै छोरा।।

गगन-तड़ाग-कमल भुज मोरे।

कीन्ह सयन सिवसंकर छोरे।।

    नहिं कोउ जोधा सेन मँझारी।

     जीति सकत मोंहें बल भारी।।

अहहिं राम तव त्रिया बिहीना।

अनुजहिं सहित भवा बल-छीना।।

     जानउँ बल सुग्रीवहिं तोरा।

      बलइ बिभीषन बहुतै थोरा।।

जामवंत मंत्री बल हीना।

तासु आयु ताकर बल छीना।।

      जानहिं सिल्प-कर्म नल-नीला।

       निपुन न होंहिं करन जुधि-लीला।।

हाँ कपि एकहिं सेन मँझारी।

अह बलवान लंक जे जारी।।

     सत्य कहे तुम्ह रावन भाई।

     करै उहहि सुगरिव- सेवकाई।।

अचरज मोंहि होय बड़ भारी।

बानर छोटइ लंका जारी।।

     रिपुता सम-समान कह नीती।

     चाहिअ करन सुनहु जग-रीती।।

तुम्हरो संग राम-रिपुताई।

होगो हानि राम-प्रभुताई।।

दोहा-सुनि अंगद कै अस बचन,दसकंधर कह क्रुद्ध।

         बानर-गुन बस इहइ कर,प्रतिपालक-हित जुद्ध।।

                            डॉ0हरि नाथ मिश्र

                              9919446372

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