डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 षष्टम चरण(श्रीरामचरितबखान)-11

समाचार अंगद कै आवन।

पाइ बुलावा निज पहँ रावन।।

    अंगद जाइ लखा तहँ रावन।

    जनु कज्जल गिरि बैठा आसन।।

रावन-भुज जनु बिटप समाना।

रोम लता इव उग मनमाना।।

      श्रृंग राज सिर जनु कोउ पसुकर।

      नैन-नाक-मुहँ कजहीं कंदर ।।

लखि अंगद सभ उठे सभासद।

बिकल भवा रावन बिनु आपद।।

     होहु कवन तुम्ह केकर बंदर।

      कारन कवन कि आयो अंदर।।

बालि-तनय अंगद मम नामा।

आयउँ इहाँ तोर हित कामा।।

    मम पितु सँग तव जानि मिताई।

    मैं आवा इहँ रावन भाई।।

कह रावन तब कछु सकुचाई।

तव पितु सँग मम रही मिताई।।

     तुम्ह सम पूत होय कुल-घालक।

      कस न मरे तुम्ह गर्भहिं बालक।।

बाली-तनय राम कर दूता।

हवै बाति ई बड़ अद्भूता।।

     मोंहि बताउ बालि-कुसलाई।

     कह अंगद सुनु रावन भाई।।

दस दिन बाद तुमहिं तहँ जाई।

पूछउ मम पितु वहिं कुसलाई।।

     राम-बिरोध होत जग कैसा।

      सखा तुम्हार बतैहैं ऐसा ।।

जाके हृदय बसहिं प्रभु रामा।

सुनु सठ ताहि भेदि केहि कामा।।

     कथमपि होंहुँ न मैं कुल-घालक।

      तुम्ह अपि होहु न निज कुल-पालक।।

कोउ नहिं अंध-बधिर जग माहीं।

कहि न सकत जस कह तुम्ह आहीं।।

     तव दस कंठ ब्यर्थ बिस नैना।

     लाजि न तुमहिं उचारत बैना।।

ब्रह्मा-संकर,सुर-मुनि सबहीं।

चहहिं राम-पंकज-पद सेवहीं।।

     तासु दूत मैं अंगद  होंई।

     तुम्ह पाई प्रभु-निंदक सोई।।

दोहा-बालि-तनय कै बचन अस,सुनि के कह लंकेस।

          नीतिहिं-धरम बिचारि मैं, सहहुँ कठोर सँदेस।।

                       डॉ0हरि नाथ मिश्र

                        9919446372

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