दोहे-(घड़ी-माहात्म्य)
घड़ी नियंत्रित ही रखे,दिनचर्या के काम।
कभी नहीं थकती घड़ी,चले बिना विश्राम।।
खाएँ-पीएँ समय से,जगें समय से लोग।
करें कर्म सब समय से,यही रचे संयोग।।
उदय-अस्त रवि-चंद्र का,सब जाने संसार।
अपनी यात्रा से घड़ी,करती समय-प्रसार।।
खेत-खान-खलिहान हों,दफ़्तर छोट-महान।
समय-सूचिका घड़ी यह,सबका रखती ध्यान।।
अतुल यंत्र यह समय का,पल-पल रखे हिसाब।
कहीं नहीं खोजे मिले, ऐसी गणित-किताब।।
यह प्रणम्य-नमनीय है,रखे काल निज हाथ।
मानव को कर सजग यह,देती उसका साथ।।
© डॉ0 हरि नाथ मिश्र
9919446372
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