"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
*षष्टम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-17
सुनि रावन-मुख प्रभु-अपमाना।
भवा क्रुद्ध अंगद बलवाना।।
सुनै जे निंदा रामहिं ध्याना।
पापी-मूढ़ होय अग्याना।।
कटकटाइ पटका कपि कुंजर।
भुइँ पे दोउ भुज तुरत धुरंधर।।
डगमगाय तब धरनी लागे।
ढुलमुल होत सभासद भागे।।
बहन लगी मारुत जनु बेगहिं।
रावन-मुकुटहिं इत-उत फेंकहिं।।
पवन बेगि रावन भुइँ गिरऊ।
तासु मुकुट खंडित हो परऊ।।
कछुक उठाइ रावन सिर धरा।
कछुक लुढ़क अंगद-पद पसरा।।
अंगद तिनहिं राम पहँ झटका।
तिनहिं उछारि देइ बहु फटका।।
आवत तिनहिं देखि कपि भागहिं।
उल्का-पात दिनहिं जनु लागहिं।।
बज्र-बान जनु रावन छोड़ा।
भेजा तिनहिं इधर मुख मोड़ा।।
अस अनुमान करन कपि लागे।
तब प्रभु बिहँसि जाइ तिन्ह आगे।।
कह नहिं कोऊ राहू-केतू।
रावन-बानन्ह नहिं संकेतू।।
रावन-मुकुटहिं अंगद फेंका।
कौतुक बस तुम्ह जान अनेका।।
तब हनुमत झट उछरि-लपकि के।
धरे निकट प्रभु तिन्ह गहि-गहि के।।
कौतुक जानि लखहिं कपि-भालू।
रबी-प्रकास मानि हर्षालू।।
दोहा-रावन सबहिं बुलाइ के,कह कपि पकरउ धाइ।
पकरि ताहि तुमहीं सबन्ह,मारउ अबहिं गिराइ।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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