पंचपर्व समारोह 2020 काव्यरंगोली प्रतियोगिता में भाग लिये हुए सभी सम्मानित रचनाकारों की रचनाओं का संग्रह
ये मेहंदी ये बिंदी ये सोलह सिंगार,
तुम्हीं से हैं पूरे ये सारे त्यौहार।
सारी ही खुशियाँ मैं दूँ तुम पे वार,
तुम्हीं से हैं पूरे ये सारे त्यौहार।।
१) तुम क्या जानो कि तुम मेरे क्या हो,
मेरे मन के मंदिर में तुम देवता हो।
तुम चाँद मेरे मेरी रौशनी हो,
प्रियतम हो मेरे मेरी ज़िन्दगी हो।।
तुमने दिया मेरा जीवन संवार
तुम्हीं से हैं पूरे ये सारे त्यौहार।।
२) साँसों में तेरी रहूं मैं समाई,
बनके रहूं मैं तेरी परछाई।।
छू लूं यूँ मन की गहराई,
तुमसे ना हो कभी भी जुदाई।।
लगने लगे कल सा बरसों का प्यार।
तुम्हीं से हैं पूरे ये सारे त्यौहार।।
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गंगा स्नान
सुनो मोरे बप्पा सुनो मोरी मैया
नहवा दो हमका तुम गंगा मैया
1 आने दे बिटिया माघ महिनवा
तबही चलिहे नहावे गंगा मैया
2 काहे तू बप्पा माघ का जोहे
का अबही गंगा मैया न होबे
सुनो।।।।
3।माघ महिनवा वहाँ मेला लगता है
सारा प्रयाग दुल्हन से सजत है
देख लेबे मेला नहाबे गंगा मैया
सुनो मोरी मुनिया।।।।
आवा माघ तो हो गयी तैयारी
झोरा में कपड़ा बोरी पूड़ी आचारी
भीड़ देख मुनिया करे दैय्या दैय्या
सुनो मोरे।।।
संगम तीरे की शोभा निराली
बसी तम्बू की नगरिया प्यारी
रातों में जस दिन उजरिया
सुनो।
जगह जगह हो रहे भंडारा
बड़े जोर का लगे जयकारा
कहूँ बंटे पूड़ी कहूं मिठाईया
सुनो।।।।
बड़ी धूम से निकले सारे अखाड़े
जोर जोर से बाजे ढोल नगाड़े
पकड़े रहे हाथ नाही जाओ हिराईया
सुनो मोरे बप्पा सुनो मोरी मैया
स्वरचित - जया मोहन
प्रयागराज
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काव्यरंगोली के आंगन में सबका मन हर्षाया।
भांति भांति के शब्द हार गुनियो ने आज बनाया।
नवरातो में मां दुर्गा जी दुर्गति नाश करेंगी।
दीवाली पर महालक्ष्मी जी धन धान्य भरेंगी।।
धन तेरस वैभव देती है, सारे दुख हर लेती।
श्री गंगा स्नान मजोत्सव चलो नदी की रेती।
पंचपर्व का वर्णन हमने अल्प बुद्धि से गाया।
सबकी इच्छा पूर्ण करो प्रभु गीत प्रिया ने गाया।।
प्रिया प्रिंसेज पंवार दिल्ली
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आओ जलते दिए की ओट बन जाएं
जहां अंधेरा है वहां रोशनी लायें
जहां असत्य है वहां सत्य लाएं
जहां गम हैं , वहां खुशियां लाएं
यूं तो दिए जलेंगे अनगिनत
आओ हम भी एक दिया ऐसा जलाएं
जो सदियों तक न बुझने पाए
मुरझाए चेहरों पर मुस्कान लाएं
अंधेरों से कैद घरों में उजाला फैलाएं
भूख से तड़प रहे इंसानों को भुखमरी से बचाएं,
ठंड से ठिठुर रहे बेजुबानों को मौत से बचाएं,
आओ हम सब मिलकर यह संकल्प उठाएं
तब जाकर सही मायनों में दिवाली मनाएं।
लवी सिंह
बहेड़ी, बरेली उत्तर प्रदेश
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-ईशवर गीत
अँधेरे को जो हर रोज मिटाता
उजाले भरी एक किरण दिखाता
हर उलझन को जो सुलझाता
जो आँख बंद करने पर सब सुन जाता है
वो भगवान कहलाता है
हर दुख को सुख से हर जाता
उठाता है जब कोई गिर जाता
जब मुसीबतों के पहाड़ से कोई घिर जाता
तेरा नाम लेकर उनसे भी लड़ जाता है
वो भगवान कहलाता है
कागज की कश्ती से नाव चलाता
बिछड़े ख्वाबों से जो हमें मिलाता
जो चाहो वो हमें दिलाता
खुशियों के पल हममें बिखराता है
वो भगवान कहलाता है
रोते चेहरों के भी रंग लौटाता
जीवन में एक नई उमंग लौटाता
बिगड़ी में भी ढंग लौटाता
ये जो सब कर पाता है
वो भगवान कहलाता है।
-नीतेश उपाध्याय
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दीपपर्व के दोहे
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दीपों का यह पर्व है,अहंकार की हार।
नीति,सत्य अरु धर्म से,पलता है उजियार।।
मर्यादा का आचरण,करे विजय-उदघोष।
कितना भी सामर्थ्य पर,खोना ना तुम होश।।
लंकापति मद में भरा,करता था अभिमान।
तभी हुआ सम्पूर्ण कुल,का देखो अवसान।।
दीपों का यह पर्व नित,देता यह संदेश।
विनत भाव से जो रहे,उसका सारा देश।।
निज गरिमा को त्यागकर,रावण बना असंत।
इसीलिए असमय हुआ,उस पापी का अंत।।
पुतला रावण का नहीं,जलता पाप-अधर्म।
समझ-बूझ लें आप सब,यही पर्व का मर्म।।
विजय राम की कह रही,सम्मानित हर नार।
नारी के सम्मान से,ही जग में उजियार।।
उजियारा सबने किया,हुई राम की जीत।
आओ हम गरिमा रखें,बनें सत्य के मीत।।
कहे दिवाली मारना,अंतर का अँधियार।
भीतर जो रावण रहे,उसको देना मार।।
अहंकार ना पोसना,वरना तय अवसान ।
उजियारे की भावना,लाती है उत्थान।।
--प्रो.(डॉ)शरद नारायण खरे
प्राचार्य
शासकीय जेएमसी महिला महालिद्यालय, मंडला,मप्र
(मो.9425484382)
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मैं पथ तेरा निहारूं राम....
तम से भरे उर में दीप जला
मैं पथ तेरा निहारूं राम
जग जीवन से कंट मिटा
तुझमें मैं मिल जाऊं राम
दीन-हीन सी काया मेरी
तेरी भक्ति पाऊं राम
तूं गीता सा ज्ञान सार है
रामायण सा जीवन पथ को ले अब थाम
मैं पथ तेरा निहारूं राम।।
सुना बहुत है निश्छल तूं
सत्य-त्याग सद्धर्म न्याय
समाहित है सब तुझमें राम
सरिता प्रीति रीति की देखो
जग सुषमा के सृजन-विनाश में बसते राम
रवि लालिमा से करता स्वागत
गंगा-यमुना-सरस्वती की मधुर प्रीति में तेरा नाम
मैं पथ तेरा निहारूं राम।।
तूं भव सागर से तारे बन प्रलय-प्रताप
हर उर में मंगल अलख जगायें राम
मिट जाते अवसादों का निश-तम
पुलकित हो अंतर्मन छलदम्भ रहित जग होवे राम
दु:ख की रजनी का हो जाए नाश
मिले अपरिमित सुख सुन्दर चितवन आनन्द धाम
मैं पथ तेरा निहारूं राम ।।
हे! वैमनस्य कटुता विध्वसंक
नयी प्रगति की नव राह बसा
अमर काल का पथ अनन्त है
'दया' प्रेम सुधा हिय में बरसा
ज्ञान दीप का नव प्रभास ले
परहीत में जग-जीवन अर्पण कर
हे! भक्त वत्सल तुझे प्रणाम
मैं पथ तेरा निहारूं राम ।।
-दयानन्द त्रिपाठी 'दया'
जनपद-महराजगंज
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"महागौरी"
कठोर तपस्या शिव को पाने
पूर्ण समर्पित भाव सन्निद्ध!
कृषकाय हो गया कलेवर
शुभ्रांगी हुई विवर्ण विद्रूप!!
प्रसन्न हुए आसूपाती शिव
माँ को दर्शन दे वरदान दिये!
प्रकृति शक्ति का उदय कराये
माँ को सर्व शक्तिमान किये!!
परिमार्जित किये योगज्ञान का
प्रक्षालित शिवगंगा जलप्रपात!
माँ हो गयीं गौरवर्णा स्फटिक
सर्व शक्ति समन्वित निष्णात !!
शुभ्रवस्त्रावृत नयनविशालिका
अभयमुद्रा वरमुद्रा में विराजै माँ !
कर में डिमडिम डमरू बजाते
त्रिशूलहस्त से दोषत्रय नाशै माँ!!
माँ का अद्भुत रुप महाअष्टमी का
बैठीं सोमचक्र की जागरण मुद्रा में!
सर्वसिद्धि कर देतीं आराधक की
प्रभाषित करतीं माँ तिमिर तंद्रा से!!
वृषभ वाहन पर विराजी माँ
असंभव को संभव कर देतीं हैं!
करुणामयी स्मित आभा से
दैहिक दैविक कष्ट हर लेतीं हैं!!
-अंजनीकुमार'सुधाकर'
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(अंजनीकुमार तिवारी,बिलासपुर, छग)
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करवा चौथ
परिणय सूत्र में बंधकर तुमसे जीवन डोर बंधाई सप्तपदी के सात वचन संग साथ तुम्हारे आई
तुम ही मेरी साध हो प्रीतम तुम ही मेरा विश्वास
तेरी नजरों में चाहूं मै हरदम साजन अपना मान
हे करवाचौथ मैया तुमसे मेरी है ये अरदास
जनम जनम का देना मुझको अपने साजन का साथ
मेहंदी काजल बिंदिया सिंदूर बालों में गजरा महके हैं
चूड़ी मेरी खन खन खनके पांव में पायल छनके हैं
कर सोलह सिंगार मै बैठीं मन मेरा क्यु बहके है
मेरा चांद पास है मेरे और मैं जैसे चांदनी की बहार
ओ गगन के चांद आजा आके अपनी छटा निखार
हम सुहागिने देख तेरी कर रही कितनी मनुहार
बादलों में छुपके तू खेले है हमसे आंख मिचोली
सुबह से भूखी है हम क्यु तुझको सूझे है ठिठोली
अरग दे करवे से तुझको भोग चुरमे का लगाऊगी
पिया के चरण स्पर्श कर छलनी से उनको निहारुगी
उनके हाथो से व्रत खोलुगी और तृप्त मै हो जाऊंगी
जुग जुग जिए मेरा सजना मैं सजना के साथ रहुँगी
सात जन्म का साथ नही सौ जन्मों का साथ चाहूंगी।
-उषा जैन कोलकाता
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मगन धरा ,छाइ उजास है।
दीपमालिका, प्रखर सजी है।
मुदित हृदय हर प्राणी डोले,
घर,घर खुसीयाँ बिछी हुई है।
राघव आए अवध धाम है,
संग जानकी, रिपूसुदन है।
राम ,लक्षमण,भरत,शत्रुघन,
कौशलपुरी, बधाई है।
हार गई हैं, दुष्ट शक्तियां,
विजय घोष अब छाई है
राम राज्य आने को है,अब
जगमग जोत सजाए है।
हार गया तम,नभ का सारा,
प्रखर रश्मियां छाई हैं।
सुखद भोर अब आने को है,
दीपमालिकाआई है।
मानव को भाए मानवता,
सेवा पथ पर बढता हो।
हर्षित हो सत्यव्रती बन,
सेवाभाव समर्पित हो।
द्वेष राग अंधियारा भागे,
ज्ञान प्रकाश बढाएं हम।
मानव अब मानवता धारे,
मन प्रकाश ,फैलाऐं हम।
सत्य प्रकाश दमकता देखें,
फैला हो हर ओर उजास।
सत्य दीप हर हृदय जगाऐं,
राम राज्य का हो आगाज।
✍🏼शोभा त्रिपाठी शैव्या
बिलासपुर
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आज दिवाली है दिया ही तो जलाना है
तम को ही तो दूर भगाना है ,
यह दीया तो बाहर का तम दूर करेगा।
मुझको तो भीतर का अंधकार मिटाना है
गुरु के वचनों से प्रीत सच्ची लगानी है
मुझको तो भीतर का दीप जलाना है
भीतर का तम जब मिट जाएगा
एक नया सवेरा जगमगाएगा
दूर क्षितिज पर मुस्कान है
तम का वही तो अवसान है
अस्वच्छता असहिष्णुता अराजकता ने हमें दबाया है स्वच्छता दयालुता नैतिकता का दीपक जलाना है
खुद भी बाहर आना है
सृष्टि को भी यही सिखाना है
आज दिवाली है दिया ही तो जलाना है
तम को ही तो दूर भगाना है।
-इंदु दीवान, गुरुग्राम
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इक चुटकी सिंदूर सजाने,
जब आये मनमीत।
हार गयी मैं अपना जीवन
हुयी प्यार की जीत।।
सजनवां अमर रहे यह प्रीत..
गूँजी थी दर पर शहनायी
चमकी वंदनवार।
जगमग करती रात सुहानी
आयी मेरे द्वार।
डोल गयी मन की अँगनायी
सुनकर मधुमय गीत।।
सजनवां अमर रहे यह प्रीत..
छूट गया मैया का आँचल
पाया प्रेमिल पाश,
मन उपवन की हर डाली पर
महके लाल पलाश।
दिल से दिल का यह गठबंधन
रखता भाव पुनीत।
सजनवां अमर रहे यह प्रीत..
अब तो मन की आस यही है
नित्य सजे सिंदूर।
क़दम मिलाकर चलती जाऊँ
निभ जाये दस्तूर।
पाँव महावर,कुमकुम टीका
महके नित नवनीत।।
सजनवां अमर रहे यह प्रीत....
-अर्चना द्विवेदी, अयोध्या
उत्तरप्रदेश
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***करवाचौथ****
हैं बेतबियाँ बढ़ी मेरी और तेरा इंतज़ार है
हाथों में है नाम तेरा और आँखों में भरा प्यार है
करवाचौथ का दिन नारी के लिए ख़ास है
पति के प्यार का यह प्यारा सा एहसास है
आज फ़िर आया है मौसम सनम के प्यार का
न ज़ाने कब दीदार होगा नटखट
चाँद का
मेहँदी का रँग़प्यार की गहराई जता रहा है
माथे पर टीका और सिंदूर सौंदर्य बढ़ा रहा है
गले में मंगलसूत्र हमारे रिश्ते पर इतरा रहा है
मौसम साजनसे प्यार का यह जता रहा है
दिल बेक़रार है तुम्हारा ख़ास इंतज़ार है
साथ बना रहे हमारा ईश्वर से यह अरदास है
दिल में अपने प्यार हमेशा जगाय रखना
ज़िंदगी के हर कदम पर अपना साथ बनाए रखना!!
-अरुणा शाह, कोलकाता
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आओ दीप जलाएँ
दीपों की कतार , प्रकाश का त्योहार ।
प्यार का त्योहार , रोशनी की बौछार ।।
स्वच्छता का त्योहार , संकल्प का त्योहार।
पूजन का त्योहार , नवजीवन का त्योहार।
रंगोली की है धूम , बच्चों की है धूम ।
पहनकर नए परिधान , खाते खूब पकवान ।।
सब करते संध्या का इंतजार ,
जब दूर होगा अंधकार
नन्हें-नन्हें दीप जलेंगे
रोशनी से घर - द्वार सजेंगे
माता लक्ष्मी का पूजन करेंगे
समृद्धि की प्रार्थना करेंगे
बड़ों का आशीर्वाद लेंगे
फिर मिलकर मिठाई खाएँगे
पटाखे हम नहीं छोड़ेंगे
धुआँ हम नहीं बढ़ाएँगे
क्योंकि डर जाएगी चिड़िया
और रोएंगे उसके बच्चे
दुखी होंगे पेड़ और
सिसकेंगी धरती माता
बच्चे हम महान बनेंगे
पर्यावरण की रक्षा करेंगे
चलो धरा के संग खुशियाँ मनाएँ
आओ दीप जलाएँ , सब मिलकर दीप जलाएँ ।
अंतरतम का अंधेरा मिटाएँ
आओ दीप जलाएँ , आओ दीप जलाएँ ।।
- चन्दन सिंह 'चाँद'
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ज़ब दूर दराज से अपना कोई,लौटकर आता है घर ।
सचमुच उसी दिन होती दिवाली,जगमग हो जाता है घर ।
जब परिवार में उठती है गूंज,हँसी के ठहाकों की ।
धीमी पड़ जाती है तब,आवाज तेज पटाखों की ।
जहाँ बड़ों का मान सम्मान और बोली मीठी होती है ।
लड्डू,बर्फ़ी से भी मीठी,वो मिठाई दिवाली की होती है।
जहाँ बच्चों की चंचलता से,
आँखों में चमक आ जाती है।
फुलझड़ी से भी बढ़कर वो चमक सब और छा जाती है ।
जहाँ आसमान से भी ऊँचा,कोई सपना देख पाता है।
दिवाली का रॉकेट भी,वहाँ नहीं पहुँच पाता है।
जो सोच,अंधकार से उजाले की ओर ले जाती है ।
सही मायने में वही दिवाली होती है,वहीं दिवाली होती है।
-शशि लाहोटी
कोलकाता
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सात रंगों से मिलकर
बना रोशनी का यह त्योहार।
आओ मिलकर दीप जलाये,
खुशियों का करें नव संचार।
दीपों का यह पर्व सुहाना,
दूर करता जग का अंधियारा।
माँ लक्ष्मी,विघ्नहर्ता गनेश संग पधारे,
पावन कर दे घर भार हमारा।
सुख-समृद्धि का यह त्योहार,
खुशियों से भरा हो सबका घर संसार।
दीवाली का पर्व सुहाना
कष्टों का करता नाश,
जीवन में लायें सबके यह पर्व उजियारा।
-डॉ शिवानी मिश्रा
प्रयागराज।
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(1)हरिगीतिका छंद(दीपावली पर्व पर)
नव दीपिका दिव्य दीपिका मृद दीपिका हे ज्योतितं।
यम चौदसं,धनतेरसम,दीपावली, नव उत्सवम।
नव पावनी, उत्साह वर्धक रात्रिका हे मात्रिका।
नव शोभितं व्यापार कर्ता,पूजितं हे ज्योतिका।
हरि नाम जप,सुंदर सुखद, हे शिवसुतं,प्रणमामि मम।
कमलासना, सुख दायनी,धन वर्षिका,प्रणमामि मम।
जय हरि प्रिया, जय शिव प्रिया,गजदंत हे, प्रणमामि मम।
गण नायकं, बुद्धि नायकं,सिद्धि दायकम प्रणमामि मम।
नव भारतं, विजया दशम,वध रावणं, शुभ शोभितं।
पति जानकी ,साकेत पति,हे नायकं परिपूजितं।
कर नव विजय, श्री राम शरणम,जानकी पद पूजितम।
सुख संपदा, अर्जित करें शुभ कामना हो पूरितं।
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
सीतापुर
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दीपावली
दीपों का त्यौहार है दिवाली,
हर घर खुशियों की फुहार है दिवाली।
रंगे दीवार व घर द्वार प्रेम से,
बाँटने मीठे का उपहार है दीवाली।
बनें रौनक हर साल ही घर की दीवाली,
मिटा कर दूरियां दिल से गले मिला देती है दीवाली।
न रहे भेद जात- पात का कोई,
बस दिलों को दिल से मिला देती है दीवाली।
चढ़ा कमल माँ लक्ष्मी को खुश करने का त्यौहार है दीवाली,
चरण छू आशीर्वाद बड़ों से पाने का त्यौहार है दीवाली।
बच्चों का दादा - दादी साथ जलाने अनार का त्यौहार है दीवाली।
मिटा सब दूरियां फिर से बढ़ाने प्यार का त्यौहार है दीवाली।
दीपों का त्यौहार है दीवाली,
हर घर खुशियों की फुहार है दीवाली।।
-वर्षा अवस्थी (मिट्ठू )
बिलासपुर (छ. ग. )
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अंदर बाहर दिए जलाएं
दीपों का त्योहार मनाए
आओ हम मिल जुल के
अंधकार को दूर भगाएं।।
खुशी खुशी से पर्व मनाएं
खाएं मिठाई और खिलाएं
कोना-कोना रोशन कर दे
जीवन में खुशहाली लाएं।।
मन के सारे मैल मिटाएं
प्रेम से सबको गले लगाएं
बना रहे अपना भाई चारा
प्यार सहेजें, प्रेम लुटाएं।।
स्वछता रखें और सिखाए
खुशनुमा माहौल बनाएं
जग से हो बुराई का नाश
फिर ये दिवाली पर्व मनाएं।।
लक्ष्मी जी को घर बुलाए
स्वागत में हम दीप जलाए
खीर बताशे छोड़ पटाखे
मिलजुल प्रकाश पर्व मनाए।
-नागेन्द्र नाथ गुप्ता, मुंबई
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करवाचौथ का चाँद
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प्रेम संस्कार समर्पण ,
भाव को करता स्वीकार
लो आ गया उत्साह भरा,
करवाचौथ का त्योहार।
व्रत की गरिमा का ,
ख्याल सहज स्वीकार।
सभी सुहागन का,
रहे अखण्ड सौभाग्य।
ये गगन के चाँद,
कर छटा की बौछार
तेरे दीदार को,
सभी बहनें करे इंतजार।
करके सोलह श्रृंगार,
गोरियाँ खड़ी द्वार ।
माँग सिंदूर डालें,
डाले गले में मंगलहारा,
व्रत पूजा अर्ध्य ऊर्जा से,
कर रही जिंदगी संचार।
दिल की बात बन तोहफा,
ये सब तेरा प्यार ।
तू ही मेरा प्यार,
तू ही मेरा संसार।
तेरे सहारे ही कटती,
मेरे दिन और रात।
अन्जनी अग्रवाल 'ओजस्वी'
कानपुर नगर , उत्तरप्रदेश।
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एक दीप
एक दीप शुभ रहे दीवाली,
एक दीप खुशहाली का।
एक दीप घर घर हो रोशन,
दिया जले दीवाली का।
एक दीप हो धन वैभव का,
सबके घर भंडार भरे।
एक दीप निर्धन की कुंटिया,
में जगमग ऊंजियार करें।
एक दीप श्रद्धा में जगमग
रमा उमा गजनायक वंदन।
एक दीप फिर अवधपुरी में
रामलला का हो अभिनन्दन।
एक दीप फिर मानवता का
अखिल विश्व विस्तार करें।
एक दीप से मिटे कलुषता
दुर्जन मन व्यभिचार हरे।
एक दीप उस वीर भूमि का
जहां हुई कुर्बान जवानी।
एक दीप यश गान सुनाएं,
भारत मां की अमर कहानी।
एक दीप जन गण मन गाए,
जयतु भारती का जयकारा।
एक दीप से रहे अखंडित,
प्यारा हिंदुस्तान हमारा।
एक दीप खुशियां लेे आए
गम का सारा मिटे अधेरा।
एक दीप मन आश जगाये
नव जीवन हो नया सबेरा।
एक दीप की तभी पूर्णता,
जग जन जब खुशहाली है
कोई अगर धरा पर भूखा
क्या फिर पूर्ण दीवाली है?
सीमा शुक्ला अयोध्या।
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दीपोत्सव दिवाली
दीपोत्सव त्योहार दिवाली
अति उमंग उदगार दिवाली।।
पूजा अर्चन वंदनवार।
रंगोली आस्था सत्कार दिवाली।।
क्रोध पर प्रेम की वर्षा होय
तिमिर पर छायी प्रकाश दिवाली।।
नीरसता उत्साह प्रखर हो
शोक का प्रतिकार दिवाली।।
ऊंच नीच का भेद न होवे
निर्धन सेवा साकार दिवाली।।
परिवार प्रिय संग उत्सव होवे
नित नव नव पकवान दिवाली।।
कुटिल बुद्धि स्थिर दमन हो
नित सुंदर व्यवहार दिवाली
सुंदर सभ्य समाज व्यवस्थित
यह प्रण लें इस रात दिवाली।।
पूर्ण अमावस तमस घनेरी
दीपों की ज्योति दिवाली।।
पूर्ण वर्ष नित अग्रिम रात्रि
अदभुत स्वर्णिम रात्रि दिवाली।।
-ज्योति तिवारी, बैंगलोर
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धनतेरस
कार्तिक मास, कृष्णपक्ष, तिथि त्रयोदस,
इस दिन सभी हिन्दू मनाते हैं धनतेरस।
धनपति कुबेर की करते हैं सब आराधना,
प्रसन्न होकर वे देते हैं सबको भरपूर संपदा।
आरोग्य के देवता हैं भगवान धनवंतरी,
पूजा-अर्चना कर हम मनाते हैं उनकी जयंती।
मृत्यु के देवता यमराज के पूजन का है विधान,
अकाल मृत्यु से बचने के लिए करते हैं दीपदान।
घर को लीप-पोतकर करते हैं साफ-स्वच्छ,
घी का दीपक जलाकर करते हैं लक्ष्मी पूजन।
ताँबे के कलश में भरकर रखते हैं पैसा,
वर्षपर्यन्त रहती है माँ लक्ष्मी की कृपा।
धनतेरस से प्रारंभ होता है दीपावली का महापर्व,
सोना-चाँदी और बर्तन खरीदना होता है शुभ।
नये वस्त्र, आभूषण, मिठाइयाँ और सजावट,
खरीदारी खूब करते हैं
इस शुभ दिन हम सब।
-अर्चना वालिया, मुंबई
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करवाचौथ
तेरा मेरा यह चांद देखो पूरे एक बरस बाद यह आया।
सूने सूने से दिल में फिर से प्यार यह लाया।
बीते वर्षों की मधुर स्मृतियां साथ फिर अपने लाया।
अग्नि को साक्षी मान पावन गठबंधन में बंधी
माथे पर बिंदिया सजाये, कलाई में चूड़ियां चमकाए
पैरों में पायल खनकाये आ गई अपने सपनों के गांव।
तेरे ही भरोसे मैंने देहली लांघी,तू मेरा चंदा मैं तेरी चांदनी बन
अपनी मांग सजाई अरमानों की,आंचल में मेरे ममता भर दी
अपनी अर्धांगिनी बना कमी सारी मेरी पूरी कर दी।
तेरा मेरा साथ यूं ही सदा बना रहे,सपने मेरे सलोने हो
प्यार से रोशन मेरा जहां हो,सौ सौ बार उपवास रख
तेरी सलामती की दुआएं मैं मांँगू,पूजा की थाली सजाये
छलनी से तेरा दीदार मैं करूं,ए चांद तू गवाही देना मेरे प्यार की
जन्मो जन्मो तक तेरा मेरा साथ रहे,रहूं सदा पिया संग और
रहूं अखंड सुहागवती ऐसा प्रभु मुझे आशीष तुम देना।
-डॉ वैंडी जैस, नई दिल्ली
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होगी रोशन धरा यहाँ पर....
होगी रोशन धरा यहाँ पर,गीत खुशी के गाएगी।
आशाओं के दीप जलाकर,हर चौखट मुस्काएगी।
होगा दूर अँधेरा जग का ,चाँद जमीं पर उतरेगा।
तारों की सौगात सजाकर,गगन धरा पर बिखरेगा।
चाँदी सी चमकेंगीं नदियाँ,पर्वत राग सुनाएंगे।
खग मृग तरु अरु सागर सारे,झूम झूम बतियाएंगे।
इन्द्रधनुष की छटा समेटे,रात दिवाली आएगी।
होगी रोशन धरा यहाँ पर,गीत खुशी के गाएगी।
लइया ,चूरा ,खेल ,खिलौने ,सजे हुए बाजारों में।
बम,फुलझड़ी,चरखी ,रॉकेट,बातें करें इशारों में।
कंदीलों की बैठक होती,बड़े बड़े दालानों में।
मगर दिया मुस्काता रहता,फुटपाथी मैदानोंं में ।
गाँव ,नगर क्या कस्बा ,पुरवा,अज़ब घटा ही छाएगी।
होगी रोशन धरा यहाँ पर,गीत खुशी के गाएगी।
होता है अधिकार सभी का,क्या सूरज क्या दीपक पर।
बंद करे जो कहीं रोशनी,रोक लगे उद्दीपक पर।
हावी होती रही निशा पर,ऊषा, इसका नमन करो।
दूर करो अँधियारा मन से,मन का मन से मिलन करो।
प्रेम दीप की लौ ही आखिर,तम को दूर भगाएगी।
होगी रोशन धरा यहाँ पर,गीत खुशी के गाएगी।
-नीरजा 'नीरू'
लखनऊ, उत्तर प्रदेश
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राम रावण
हर वर्ष जलाते हो रावण, अब कितने और जलाओगे,
रामचरित पढ़कर सोचो, क्या तुम राम से बन पाओगे,
राम रावण को मंच पर तुम, हर वर्ष ही देखा करते हो,
अंदर बैठे रावण को भी, क्या तुम कभी जला पाओगे ।
श्री राम सदा ही पूज्य हैं, मर्यादा-पुरुषोत्तम कहलाते हैं,
कितने ही प्रसंग रचे ऐसे, जो जीने की राह दिखाते हैं,
क्षत्रिय-धर्म का पालन करके, असुरों का संहार किया,
उनके कर्म ही धर्म-अधर्म की, परिभाषा स्पष्ट कराते हैं ।
रावण भी वंदनीय तो था, वह प्रकांड-पंडित ज्ञानी था,
तुम उसे जलाते तो हो पर, नहीं उसका कोई सानी था,
उसकी कमियाँ उसे ले डूबीं, मर्यादा को वह गया भूल,
तिरस्कार सभी करते उसका, चूंकि वह अभिमानी था ।
यदि रावण-दहन करना हो तो, योजनाबद्ध कर डालो,
अपने मन की कमियों को, ढूंढ-ढूंढ के बाहर निकालो,
जब किसी को गले लगाना तो, मन में बैर नहीं रखना,
खुश रहो और खुश रखो भी, राहें आसान बना डालो ।
इं० शिवनाथ सिंह, 645 ए/ 460,
जानकी बिहार कालोनी,
जानकीपुरम, लखनऊ।
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अच्छे दिन की आस
पहले खुद नियम का पालन करो , फिर दूसरे को सिखाओ
पहले खुद एक कदम बढ़ाओ , फिर औरो को बताओ
पहले आप खुद बदलो, फिर औरो को बदलो अच्छे दिन की आस जल्द पूरी हो जायेगी
चाहे माँ या बेटी हो , या हो कोई और
सबकी रक्षा खुद करो , फिर औरो से कहो
फैसला पहले खुद करो , फिर औरो को फैसला दो
अच्छे दिन की आस जल्द पूरी हो जायेगी
अन्याय होता देखकर , डरो और चुप न रहो , पहले खुद आवाज उठाओ ,फिर औरो से कहो
गलत रास्ते में , चलने वाले को छोड़ो
पहले आप रस्ते पे आओ , फिर औरो से कहो अच्छे दिन की आस जल्द पूरी हो जायेगी
फैली और पड़ी गंदगी को, साफ करना है तो
पहले आप झाडू उठाओ , फिर औरो से कहो
नियमो का पालन बताने से क्या होगा
पहले खुद करो फिर औरो से कहो
अच्छे दिन की आस जल्द पूरी हो जायेगी
संस्कार और व्यवहार सिखाने से पहले
आप खुद सीखो , फिर औरो को सिखाओ
हथियार छोड़ शांति से बात करना
पहले आप सीखो , शांति की बात फिर बताओ अच्छे दिन की आस जल्द पूरी हो जायेगी
- राम नारायण साहू "राज"
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कैसी रही यह दिवाली
कल मेरी वाली दिवाली खुब मनी,
ऐसी मनी कि घर में ही दोनों में ठनी।
मैं शाम से बाहर ही सोया था,
उसे क्या मालूम मैं अंदर ही रोया था।
सोचा क्यों किसी की दिवाली खराब करूँ,
कुछ कष्ट है चले जाएँगे स्वयं सहता रहूँ।
थोड़ा पड़ गया था मैं बीमार,
आ गया था एक सीजनल बुखार।
खीसियानी बिल्ली आ गई मेरे आगे,
बोलीं दिवाली के दिन भी आप नहीं जागे।
सरीर टूट रहा हिल रहा है मकान,
अकेले नहीं पक रहे हैं पकवान।
जैसे ही गुस्से में चादर हटाई,
गया गुस्सा जब मेरा शरीर गर्म पाई।
बहुत अफ़सोस करने लगी वह बेचारी,
क्या करतीं उनकी भी थीं एक लाचारी।
मुझे उसी समय एक अफ़सोस हुआ,
दुख हुआ जब मैंने उसे था छूआ।
तप रहा था तन बुखार था बड़ा भारी,
जल रही थी वह फिर भी थी उपकारी।
कितना त्याग,कितनी होतीं हैं संस्कारी,
स्वयं जलकर भी ये माँएं होतीं हैं परोपकारी।
ऐसे कटी मेरी दिवाली,
अब ठीक है आ गई है घर में हरियाली।
- सुबोध
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दीपावली-प्रकाश पर्व
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दीवाली पावन त्योहार,जगमग दीपों का उजियार।
हे प्रकाश के पर्व आपको,नमन हमारा शत शत बार।
विजय हुई है सदा धर्म की,अधर्म सदा ही है हारा।
धर्म है शाश्र्वत परम सनातन, नैतिक प्रबल शक्ति की धारा।
रावण निधन विजय लंका पर, यह संदेश हमें दे जाये।
धर्म की रक्षा हित धरती पर, मर्यादा पुरुषोत्तम आये।
शुभ दिन यही आज अयोध्या,लौटे सिया अनुज संग रघुवर।
अवध पुरी में प्रभु का स्वागत,घृत के अगणित दीप जलाकर।
इस विजय दिवस की स्मृति में, पावन दीवाली त्योहार।
हे प्रकाश के पर्व आपको, नमन हमारा शत शत बार।
साफ स्वच्छ सारा घर आंगन,कलश धरा पूजन बेदी पर।
थाली में पूजन सामग्री,दीपक धरा कलश के ऊपर।
ज्योति प्रज्ज्वलन कलश दीप से,लक्ष्मी गणेश विधिवत पूजन।
दीप आरती तुमुल शंख ध्वनि,ल इया खील बताशा वितरन।
सजने लगे दीप बहु बाहर,देहरी छत कमरे घर आंगन।
सजी अमावस दुलहन जैसी,,दीप ज्योति बन आये साजन।
रंग बिरंगी लड़ियां चमके,जगमग जगमग सबके द्वार।
हे प्रकाश के पर्व आपको, नमन हमारा शत शत बार।
आज अमावस पूनम लागे, जगमग जगमग दीप कतारें।
ऐसा लगे मनोरम जैसे,उतरे हों धरती पर तारे।
कहीं पटाख़ा फूटें धम से, कहीं फुलझड़ी छूट रही है।
कहीं बांण आकाश में फूटें,चकरी फर फर नाच रही है।
बालक बूढ़े युवा सभी पर, आज मौज की मस्ती छाई।
उपहार प्यार अपनेपन का,आंचल में दीवाली लाई।
प्रेम की ज्योति जली मन में,मिटा द्वैष का अंधकार।
हे प्रकाश के पर्व आपको,नमन हमारा शत शत बार।
नये नये परिधान पहन कर,सारे बच्चे हंस खेल रहे।
छूकर चरण बड़ों के छोटे,प्यार और आशीष पा रहे।
लेना देना उपहारों का, मित्रों के घर मिलने जाना।
यह पर्व हमें सिखलाता है, सम्बन्धों को सरस बनाना।
स्वादिष्ट व्यंजनों से सज्जित, विशिष्ट आज भोजन थाली।
पूरी दही कचौड़ी चटनी,है खीर बनी मेवे वाली।
धर्म साथ सामाजिक समता, दीवाली का है उपहार।
हे प्रकाश के पर्व आपको, नमन हमारा शत शत बार।
-सुरेन्द्र पाल मिश्र
पूर्व निदेशक भारत सरकार।
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माँ दुर्गा की वन्दना पञ्चचामर छंद में ......
गदा त्रिशूल धारिणी , प्रसीद सिंहवाहिनी
सती सुधा सुहासिनी , नमामि धर्मधारिणी |
तुम्हें धरा पुकारती , दया करो माँ तारिणी
नमामि चण्ड नाशिनी , नमामि मुण्डधारिणी |
नमामि मातु चण्डिके ,भजामि शोकनाशिनी
नमामि मातु अम्बिके , अभीष्ट सिद्धदायिनी |
विशाल रूपधारिणी , कराल रूपधारिणी
निशुंभ शुंभ मर्दिनी , तु रक्तबीज नाशिनी |
भजामि मातु वैष्णवी , भजामि विंध्यवासिनी
भजामि दुर्गनाशिनी , भजामि दुर्गदारिणी |
भजामि मातु शारदा , भजामि शूलधारिणी
सुबुद्दि बुद्धि कीजिए , माँ काम क्रोधनाशिनी |
सुयोग योग कारिणी , त्रिदेव शक्तिधारिणी
जलोदरी , शिवा प्रिये ,अचिन्त्य रूपधारिणी |
महाबला , महातपा , कलेष द्वेष दोहिनी
प्रसीद मातु भाविनी , प्रसीद विश्वमोहिनी।
@संगीता श्रीवास्तव सुमन
छिंदवाड़ा मप्र
संपर्क - 9575065333
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आसमां से धरा पर उतरी, गंगा स्वर्ग की अप्सरा-सी ।
श्वेत वस्त्रों में लिपटकर ,पवित्रता की हसीं धरा-सी ।
जीवन जिसमें स्पन्दित, अमृत रस बहाती वो,
धारण सबके पाप पुण्य, मौन रहती सदा ही वो ।
मानव विकास की साक्षी, जीव जगत की दाता वो।
असंख्य कालों में बहती , अमर अजर माता वो ।
माँ है जगत जननी वो ,हर प्यासे दिल की आस भी ।
आज हुआ आँचल मैला, ये कैसी बिछी बिसात भी ।
रूदन नही सुन पाते क्यूँ हम, गंगा भारत की साँस-सी ।
इन्दु मिलकर प्रण ले ,खिलाए होठों पे मुस्कान भी ।
डॉ इन्दु झुनझुनवाला
बेंगलौर
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_दीपावली पर मेरे द्वारा रचित कुछ दोहे_
(1)
दीपों का त्योहार शुभ,सिखलाता यह बात ।
अंतस से तम दूर हो ,आये नया प्रभात।
(2)
दीपों के त्योहार पर, मन में उठता भाव ।
अहंकार का नाश हो, सबका मृदुल स्वभाव ।
(3)
दीप सदा प्रेरित करें, जग में हो उजियार।
अंधकार का नाश हो, चमकें बंदनवार।
(4)
दीवाली का पर्व शुभ, देता यह संदेश।
राम हमारे उर बसें, रहे न कोई क्लेश।
(5)
दीवाली की सीख यह, स्वस्थ बने परिवेश।
मन से मन का मेल हो, रहे न कोई द्वेष ।
(6)
आतिशबाजी से सदा, होता स्वास्थ्य खराब ।
वायु प्रदूषित हर जगह, इसका नहीं जवाब।
(7)
ज्योति पर्व सब को मिले, ऐसा शुभ वरदान ।
खुशियां बरसें हर जगह, मानव का कल्याण।
-डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम'
150 छोटा बाजार दतिया (मध्य प्रदेश) 475661 , मोबाइल 9425726907
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शीर्षक आओ मिलकर दीप जलाये
विधा - कविता
संकल्प -अटल,उज्ज्वल- जीवन,
मानवता की ज्योति जलाये,
निराश मन परिणत हो जाये,
ले आशा की, मशाल आये।
आओ मिलकर दीप जलाये ।
पूर्ण-चाँद की धवल चाँदनी ,
आलोकित नभ धरा तरंगित,
निस्पन्दन तम त्राण मिटाये ,
तब ज्योतित हम निशा बनाये।
आओ मिलकर दीप जलाये ।
दीप- रागिनी, क्षितिज अलंकृत,
करुण प्रेम, सुधि-ज्ञान विभूषित,
सहिष्णुता श्वासों भर जाये ,
विजय- घोष- ध्वनि, गूँज सुनाये।
आओ मिलकर दीप जलाये ।
ह्रदय भरे विश्वास घनेरे ,
सशक्त विकास हों बहुतेरे,
रवि उजास अनवरत जगायें
आवाहन मिल करें-करायें।
आओ मिलकर दीप जलाये ।
संस्कृति की महान विभूतियाँ,
कृष्ण, बुद्ध , जिन, नानक, ईसा,
धूमिल अज्ञात स्वर्ण निधियाँ,
उर सहेज सम्मान जताये।
आओ मिलकर दीप जलाये ।
-चंदा प्रहलादका
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दीपावली
दीपावली का पावन त्यौहार है आया,
जीवन में सभी के खुशियां लाया!
दीपों की खूबसूरत कतार है सजी,
सजा है सबका घर आंगन,
बड़े देते हैं सभी को आशीर्वाद,
छोटों को मिलता खूब सारा उपहार,
सभी जलाते पटाखे फुलझड़ियां बम!
दीपावली का पावन त्यौहार है आया,
जीवन में सभी के खुशियां लाया!
लक्ष्मी जी को मनाते सब लोग,
उनको चढ़ाते लड्डू और मिठाइयों का भोग,
इस दिन मना कर लक्ष्मी जी को,
सभी पाते धन और संपन्नता!
दीपावली का पावन त्यौहार है आया,
जीवन में सभी के खुशियां लाया।
फरजाना बेगम( साहिबा)
तार बहार बिलासपुर छत्तीसगढ़
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🌝करवा चौथ 🌝
करवा चौथ का त्योहार
लाए ख़ुशियाँ हजार
हर सुहागिन के दिल का
ये अरमान है
पिया के दिल मे बसे
उसकी जान ।
मेहंदी रचे हाथ, चूडियों से सजे हाथ
पूजा का थाल और ले करवा हाथ
मागूँगी तुमसे, रहे पिया सदैव साथ
लंबी उम्र का वर , पिया को दे जाना
मेरा साज श्रींगार सब पिया से है
मेरे जीवन का उल्लास सब पिया से है
बिखरे जीवन में प्यार सब पिया से है ।
घर और परिवार सब पिया से है
सातों जन्म के साथ का वर दे जाना
चाँद मे दिखती है मुझे मेरे पिया की सूरत
चाँद संग चाँदनी सी मुझे भी उनकी जरूरत
उम्र तुझे मेरी भी लग जाये
काश तेरी साँसे मुझमें बस जाये
करवा चौथ है बहुत सुहाना
अगर मैं रूठ जाऊँ तो तुम मनाना
दिल मेरा फिर से तेरा प्यार माँगें
प्यासे नैना फिर से तेरा दीदार माँगें ।
दीप्ति प्रसाद
( हुगली, कोलकाता )
_______________________
दिवाली
आया त्योहार दिवाली का
प्यार और खुशहाली का
इसे मनाते हम हर्ष के साथ
प्यार और उल्लास के साथ
कार्तिक मास की अमावस्या को
दिवाली हम मनाते हैं
सारे गिले शिकवे भूल
एक दूजे को गले लगाते हैं
बाजार की शोभा देखते ही बनती
दीए, मिठाइयों से खूब है सजती
घर में खूब सफाई होता
पूरा घर है खूब चमकता
धर को दीपों से सजाते।
भाँति भाँति के मिठाई बनाते
खूब सुंदर रंगोली बनाते
चहुंओर खुशियाँ लुटाते
गणेश जी, लक्ष्मी जी की मूर्ति लाते
सब मिल संग में पूजा करते
एक दूजे के घर पर जाते
बड़ों का आशीर्वाद हैं लेते
डाॅ0 उषा पाण्डेय
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जय-जय चित्रगुप्त हरे
वर्णन करते हैं कथा सुनिये चित्त में धरकर ध्यान
प्रगट हुए विश्व में जो परम ब्रह्म चित्रगुप्त भगवान |
अनादि -अंनत परम परमेश्वर के वाचक है चित्रगुप्त
प्राणी के पाप-पुण्य कर्मफल के विचारक हैं चित्रगुप्त |
श्यामवर्ण विष्णु स्वरुप चतुर्भुज बड़ी-बड़ी भुजाओं वाले
कमलनयन विशाल मस्तक पूर्ण चंद्रमा सदृश्य मुख वाले |
इस धरा में हाथ में कलम दवात तलवार लिए प्रकट हुए परमब्रह्मा के प्रतिबिंब "चित्रगुप्त" नाम में से विख्यात हुए |
लेखनी से प्राणीमात्र के कर्मों का लेखा जोखा करने वाले
देव दानव यक्ष किन्नर समस्त प्राणियों द्वारा पूजने वाले |
कार्तिक शुक्ल द्वितीया को करें पुण्यमयी चित्रगुप्त पूजन
चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पण कर करें उन्हें बारंबार नमन |
यमलोक में यमराजा - धर्मराजा के नाम से विख्यात
वंशज एक विशेष वर्ग कायस्थ नाम से सदा विख्यात |
सकल जगत के कर्म दाता, पाप पुण्य के फल दाता
समस्त सृष्टि के निष्पक्ष न्यायसंगत स्वकर्म जीवन दाता |
जय जय चित्रगुप्त हरे जय परमेश्वर परम ब्रह्म अवतारी
जय जय चित्रगुप्त जय जय हे सकल जगत हितकारी |
- सीमा निगम
डाल्फिन प्रिमियम प्लाजा, रायपुर छत्तीसगढ़, फोन-7869458122
_________________________
आज का रावण..!
त्रेता की त्रासदी,
आज कलियुग में आ फँसी।
राम रावण की छिड़ी लड़ाई,
रावण की हुई जग हँसाई।
परन्तु रावण एक विकट प्राणी था,
पापियों में उसका नहीं सानी था।
कुछ दिन उसने एतवार किया,
कलयुग आने का इन्तजार किया।
चुप होकर फिर से उभरा है,
अब तो वह घर घर पसरा है।
वह भी रावण,तुम भी रावण,
गौर किया तो मैं भी रावण।
आज रावण खुद शर्मिंदा है,
पहले से भी बड़ा रावण जिन्दा है।
आज हर काम के पीछे रावण है,
हर रावण के पीछे हम भी हैं।
हर वर्ष हम करते उनका दहन है,
पर वह चला गया यह वहम है।
हर राम यहाँ पर मौन है,
उससे टकराने वाला कौन है?
आज का रावण पहले से महान है,
क्योंकि वह इन्सान नहीं शैतान है।
तुम कितने रावण मारोगे,
हर घर से रावण निकलेगा।
अपने तेज तेवर से,
वह सारी दुनियाँ को निगलेगा।
हर इन्सान यहाँ अब रोता है,
पर अति का अंत होता है ।
कोई तो ऐसा आएगा ,
जो रामराज्य फिर लाएगा ।
राम की महिमा राम ही जाने,
हम तो ठहरे उनके दिवाने।
-प्रो.सुबोध कुमार झा,
साहेबगंज, झारखण्ड
____________________
आओ एक छोटा सा दीप जलाएँ...
हर दिल का मेल कराएँ,
हर घर में उजाला कराएँ।
अंधकार को दूर भगाएँ,
सुख समृद्धि का वास कराएँ।
आओ एक छोटा सा दीप जलाएँ।
सब मिल दीपावली का पर्व मनाएँ,
घर आँगन को खूब सजाएँ।
रंगोली के रंग बिखेरें,
गणेश-लक्ष्मी घर में लाएँ।
आओ एक छोटा सा दीप जलाएँ।
दुर्गम लक्ष्य हो काँटों भरी राह हो,
दृढ़ता से कदम बढ़ाएँ सदा।
सपनों को साकार करते हुए,
विजय-पथ पर बढ़ते रहें सर्वदा।
आओ एक छोटा सा दीप जलाएँ।
अनमोल रिश्ते बनाए रखें,
आशाएँ सदा जगाए रखें।
आत्मविश्वास को साथ में लिए,
मन में एहसास जगाए रखें।
आओ एक छोटा सा दीप जलाएँ।
- बिन्दु सिकंद, नई दिल्ली
_______________________
कोरोनो काल मे दीपावली कैसे मनाएं
भारतीय संस्कृति में दीपावली सबसे बड़ा पर्व होता है।
पांच दिवसीय
धनतेरस से भाईदूज की पूजन तक , धनतेरस , रूप चौदस ,इस दिन को नरक चौदस भी होती है ।इस दिन नरकासुर का वध किया था अगले दिन दिपावली
दिपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजन ,सुहाग पड़वा भी व फिर दूज के दिन भाईदूज होती है।
यमद्वितीया भी कहते है, इस दिन चित्रगुप्त भगवान का पूजन करते है।
अब कोरोनो काल मे दीपावली हर्ष व उल्ल्हास से मनाएंगे , पर पहले यह भी देखना है ।कि कोई मजबूर परिवार , जिसके पास दिए जलाने बच्चों के लिए कुछ पकवान बनाने के लिए नहीं हो ।तो हम कुछ ज्यादा बनाये जैसे मिठाई ,गुछिया ,नमकीन
के पैकेट बनाकर उन बच्चों को जरूर देंगे
कुछ नए कपड़ें , कुछ नए बरतन और उनकी जरूरत का सामान खरीद कर उनको देगे।
व उनके चेहरे की खुशी देखकर ही हमारी दीपावली की खुशी दुगनी हो जाएगी।
हा फुलझड़ीया अवश्य चलाये।
कोरोनो काल का ख्याल करके इससे प्रदूषण बढ़ेगा , व जो बीमार है उन्हें सांस लेने में तकलीफ भी हो सकती हैं।
बीमार व्यक्ति को भी ध्यान में रखते हुए ,
सभी का ध्यान रखते हुए
दीपावली बड़े धूमधाम से मनाएंगे ।
अगर दिल में खुशी है, तो हर रोज दिवाली हो सकती है।
अपने अंतस में हर्षित है।
खुशियां ढूढ़ने हमे बाहर नहीं अपने भीतर जाना है।
-नीलू सक्सेना देवास
______________________
-'गजल'
उम्मीदों का दीप जला दो यारो।
मतभेदों को आज भुला दो यारो।।
भाईचारा दिखलाओ आज सभी।
मिलकर तम को दूर भगा दो यारो।।
देश मुसीबत में हो तो एक रहो।
मुश्किल को आसान बना दो यारो।।
जो मायूस दिखे उसको समझाओ।
दीप जला उम्मीद जगा दो यारो।।
'चाँद' उजाला लेकर जब निकलेगा।
पुष्प घरों में आप खिला दो यारो।।
-चन्द्रभान सिंह 'चाँद',
कासगंज (उ. प्र.)
________________________
दीपावली कार्तिक गंगा स्नान
साल मे एक बार गंगा स्नान
कार्तिक महीना महान
वेदों का मंञ करना !
हथेलियों से गंगा पानी से
तन मन को धोना , एक
दीप जलाकर पानी मे
पुष्पाजली से दिया बहाना
जीवन का तिरपन कर
सूयॅ नमस्कार करना
दीपावली कार्तिक गंगा स्नान
परंपरा का पवॅ महान
जिस देश मे गंगा बहती
यह देश अपना महान
जीवन मे एक बार करना
गंगा स्नान
-कान्ता तिवाङी गङचिरोली,
महाराष्ट्र है मेरा अङृस परिमल निवास - मु पो , सिरोंचा ङि,गङचिरोली, महाराष्ट्र
___________________________
दीपमाला सज गयी ,
द्वार देहरी आँगना ।
ड्योढ़ीयो पर हंस रही ,
रँगी रंगोली अल्पना ।
तिमिर तिरोहित हो गया ,
दीपों की धवल श्रंखला ।
हर्ष खुशी सद्भावों की ,
उर छलकती शुभकामना ।
नव वधू सी निशा उमगती,
ज्योतियो की लिए ओढ़नी ।
अमा संकुचित द्वार खड़ी ,
रोशनी का करे पै लगना ।
विजय पर्व ले कर आया ,
उजालों का बहता झरना ।
धरा प्रकृति संग झूम रही,
बहक उठा मन का सुगना ।
धर्म कर्म की वायु सुरभित ,
पंच पर्व का उल्लास घना ।
दीपोत्सव सबका हो अद्भुत,
लक्ष्मी गनेश की हो अर्चना ।
रिद्धि सिद्धि भंडार भरें,
मिटे समूल देश से कॅरोना ।
डॉ अर्चना प्रकाश, लखनऊ
___________________________
दीपावली- जय राम लला की
राम विष्णु अवतार अयोध्या राम लला की।
दशरथ के सुत चार अयोध्या राम लला की।।
.
धर्म बसाए मूल शिक्षा नैतिकता धरते।
वेदों के संग शस्त्र ज्ञान की शिक्षा वरते।
विश्वामित्र का ज्ञान विष्णु के जो अवतारी।
गुरु वशिष्ठ संज्ञान सृष्टि लगती शुभकारी।
अनुपम रघुकुल सार अयोध्या राम लला की।
राम विष्णु अवतार.............।।
रीति नीति का ज्ञान प्रीति से रघुवर माने।
सदा वचन का मान धरे सुख दुख न जाने।
मर्यादा के राम अनूठा त्याग बसाए।
वेद उपनिषद साथ सदा ओंकार रमाए।
दर्शन मिले अपार अयोध्या राम लला की ।
राम विष्णु अवतार..........।।
राज तिलक श्री राम राजा दशरथ की इच्छा।
कैकई वनवास माँग कर करी परीक्षा।
सहज गए वनवास वचन सुन आज्ञाकारी।
रावण का वध किए सन्त जन के उपकारी।
सत्य की जय जय कार अयोध्या राम लला की ...
सजा अयोध्या धाम हुए हर्षित नर नारी।
मुदित हुए सब ईश शुभग आई अब बारी।
उदित बदन मन मुदित सदन में मंगल गाए।
स्वागत जग उद्धार राम घर वापस आए।।
गाओ मंगलाचार अयोध्या राम लला की....।।
यशपाल सिंह चौहान
नई दिल्ली, 9968822303
________________________
नवरात्रि .....जय माँ सिद्धीदात्री
नवाँ दिवस नौ रूप का, ध्यान रंक अरु भूप।
सिद्धीदात्री माँ धरे,अर्ध शिवेश्वर रूप।
नंदा गिरी अति प्रिय माँ,भक्त ह्रदय है वास,
भक्तों को शुभ वर मिले, अनुपम दिव्य अनूप।
सत्य समर्पित भाव से, पूजन अरु अरदास।
जो कंजिका जेवैं सरस,मान मातु का वास।
मातु सहज वरदान दे, पूरण करती काज,
सिद्धीदात्री माँ सदा,हैं मधु अद्भुत खास।।
- मधु शंखधर 'स्वतंत्र'
प्रयागराज
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