मोहब्बत की लौ थी जलाई गई।
जो दीवानगी तक निभायी गई ।
वफ़ा ए मोहब्बत में हद से गुजरना।
इबादत के माफिक अदायी गयी।
कभी रात दिन तेरी राहों का तकना।
न यादें कभी वो भुलाई गई।
दरख्तों के साए में छुप छुप के मिलना ।
वो रूहों में रूहें समायी गई।
मोहब्बत भरे उन तुम्हारे खतों से।
थी चुप चुप के रातें बिताई गई ।
कभी बाग में मेरे गेसू सजाना ।
थी रस्में मोहब्बत जताई गयी।
बड़ी होती मुश्किल ये राहे मोहब्बत ।
मगर सुष ये दिल से सजाई गई।
सुषमा दीक्षित शुक्ला
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