सुषमा दीक्षित शुक्ला

 मोहब्बत की लौ थी जलाई गई। 

जो दीवानगी तक निभायी गई ।


वफ़ा ए मोहब्बत में हद से गुजरना।

इबादत के माफिक अदायी गयी।


कभी रात दिन तेरी राहों का तकना।

  न यादें कभी वो भुलाई गई।


 दरख्तों के साए में छुप छुप के मिलना ।

वो रूहों में रूहें समायी गई।


 मोहब्बत भरे उन तुम्हारे खतों से।

 थी चुप चुप के रातें बिताई गई ।


कभी बाग में मेरे गेसू सजाना ।

थी रस्में मोहब्बत जताई गयी।


 बड़ी होती मुश्किल ये राहे मोहब्बत ।

मगर सुष ये दिल से सजाई गई।


सुषमा दीक्षित शुक्ला

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...