ग़ज़ल--
तीर नज़रों के उन्हें जब से चलाना आ गया
मेरी जानिब ही उधर से हर निशाना आ गया
ज़िन्दगी मायूसियों की ज़द में थी खोई हुई
उनकी सोहबत में हमें हँसना हँसाना आ गया
उनसे मिलते ही हमें होने लगा ऐसा गुमाँ
वादिये-कशमीर सा मौसम सुहाना आ गया
हमने क्या दे दी उन्हें दिल के दरीचे में पनाह
रफ़्ता रफ़्ता उनको नखरे भी दिखाना आ गया
दिल की साज़िश है या है मासूमियत जाने वही
हुक़्म पर उनके हमें अब सर झुकाना आ गया
लाख कोशिश की छुपा लूँ प्यार की सौग़ात को
उफ़ मगर सबके लबों पर यह फ़साना आ गया
जिसको देखा ग़ैर का निकला नशेमन दोस्तो
हम समझते थे कि अपना आशियाना आ गया
शायरों कवियों को कहना पड़ रहा पढ़िये हमें
देखते ही देखते यह क्या ज़माना आ गया
इश्क़ में किस मोड़ पर लाई है *साग़र* ज़िंदगी
दर्द सहकर उनकी खातिर मुस्कुराना आ गया
🖋️विनय साग़र जायसवाल
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