निशा अतुल्य

विजय दिवस 16 .12 .2020 नन्ही सी मैं, नन्हा मेरा मन आँगन में उड़ता रहता था जीवन में था बस खेलकूद ही सुंदर सरल मेरा जीवन था । खेत निराले हरे भरे थे श्री गंगा नगर में गांव बड़े थे रहते थे हम तामकोट में जहाँ पिता श्री देते शिक्षा थे। सन् आया उनिसौ इकहत्तर पिता जी ने कुछ बोला डर कर हम तो बिल्कुल हैं बॉर्डर पर जाना पड़े न जाने कब छोड़ कर । समझ नहीं मुझको तब आया डर था एक मन में समाया छूट जाए ना सँगी साथी तब हमने एक लक्ष्य बनाया। चलो चले सब मिलकर हम तुम मार भगाएं हम दुश्मन को करी इक्कठी अपनी सेना करने लगे युद्ध अभ्यास हम । रोज अन्धेरा हो जाता था दीया नही घर जल पता था हम दुबके रहते थे घर में नन्हा मन तब घबराता था । घड़ घड़ विमान उड़ता था लगता मुझको बहुत भला था मन ही मन मैं सोचा करती क्यों सब को इससे डर लगता। नन्हा मन कुछ समझ न पाया बैठे रहते क्यों रेडियो पर बाबा कभी खुश होते कभी थे रोतें नहीं समझ तब मुझको आता । मिली सफलता सेना को फिर सोलह दिसंबर का था दिन जब झूम रहे थे सभी मिल कर मैं भी नाच रही थी उन सँग । विजय दिवस उल्हासित मन था किया पाक का टुकड़ा अलग था सेना ने अपना शौर्य दिखाया तिरानवे हजार को बंदी बनाया। नाक रगड़ी फिर पाकिस्तान ने आत्मसमर्पण नियाजी ने करवाया बंगला देश का जन्म हुआ फिर शक्ति वाहिनी ने शौर्य दिखाया। पाकिस्तान का मुँह पिटा था ये अब मेरी समझ में आया नमन तुम्हें है अमर जवानों तुमने देश का मान बढ़ाया । शत शत नमन करूँ, शिश झुका कर मातृभूमि पर मिटने वालों मैं भी कुछ अच्छा कर जाऊं मातृभूमि का मान बढ़ाऊं । स्वरचित निशा"अतुल्य"

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