जिज्ञासा
देर से बनो लेकिन कुछ बनो
लोग वक्त के साथ
खैरियत नहीं हैसियत पुछते है
सब योनि सब भोग मिलेंगे
मानुष तन दोबारा नहीं मिलेंगे
हरि का गुण निशदिन नहीं गाया
नाम धरा तेरा इंसान
बात करे तो उल्टा बोले
छोड़ दें मान गुमान
देर से बनो लेकिन कुछ बनो
लोग वक्त के साथ
खैरियत नहीं हैसियत पुछते है
यह संसार कांटे की बाड़ी
उलझ पुलज मर जाना है
कबहू न संत शरण में आया
बूंद पड़े घुल जाना है
ये दुनिया है चार दिनों की
रिश्ते नाते है सब मतलब की
जग में पहचान ऐसा बना ले
जैसे गौतम गांधी ने बनाया
देर से बनो लेकिन कुछ बनो
लोग वक्त के साथ
खैरियत नहीं हैसियत पुछते है
आत्म ज्ञान बिना नर भटकत है
क्या मथुरा क्या काशी
पानी बीच में मीन प्यासी
मोहे सुन सुन आवे हांसी
अरे मन तू किस पै भूला है
बता दें कौन तेरा है
जग में पहचान ऐसा बना ले
जैसे भक्त प्रहलाद ने बनाया
देर से बनो लेकिन कुछ बनो
लोग वक्त के साथ
खैरियत नहीं हैसियत पुछते है
नूतन लाल साहू
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