*प्रेम किया है..*
( मात्रा भार 15)
प्रेम किया है मजाक नहीं।
दिल दिया छाना खाक नहीं।।
बोल उठो चपला चंचला।
प्रेम करो सबला शशिकला।।
तड़पाना नहीं कबहूँ सखि ।
हरषाना सदा मम मन रखि।।
प्रति पल बरसत मेरे नैन।
प्रेम वियोगी मैं दिन-रैन।।
मेरे प्यारे देखो आँख।
इससे प्यार रहा है झाँक।।
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
*क्रांति*
*(वीर रस)*
परिवर्तन का अंतिम रूप, संरचना से यह संबंधित।
संरचना में जब बदलाव, आता है तब दृश्य बदलता।
बदला-बदला होता दृश्य, यह अमूलचूल परिवर्तन।
कहलाता है सचमुच क्रांति, मंजर सारा नये रूप में।
प्रगतिशीलता का संदेश, देती रहती क्रांति सर्वदा।
नये-नये उठते हैं भाव, छोड़ पुरानी जीवन शैली।
परंपरा का दिखता लोप, नयी सभ्यता होत अवतरित।
नये-पुराने का संघर्ष, चलता रहता बहुत दिनों तक।
लेत पुरानी अंतिम श्वांस, नवाचार की होत विजय है।
नयी-तकनीकी -अविष्कार, उत्पादन के नये तरीके।
होता बहुत अधिक उत्पाद,नव युग का आरंभ सुनिश्चित ।
होते लगातार संधान, नयी-नवेली उत्पादन विधि।
सुख-वैभव का यह आधार,क्रांति वृक्ष का यह परिचायक।
सब क्षेत्रों में होती क्रांति, शुभ समाज को स्थापित करती ।
शिक्षा- खेती-आर्थिक क्षेत्र, सबमें क्रांति दिखायी देती।।
हरित क्रांति-औद्योगिक क्रांति, श्वेत क्रांति सब नव विधि के फल।
गुणवत्ता की करना खोज, इसी खोज पर क्रांति टिकी है।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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