प्रीति-संगम (सजल)
सदा प्रीति का संगम होगा।
प्रेम नीति का सरगम होगा।।
धोखे का व्यापार नहीं है।
लगभग दो का जंगम होगा।।
एक दूसरे को पढ़ लेंगे।
दृश्य सुहाना अंगम होगा।।
रट लेंगे हम सहज परस्पर।
एकीकरण शुभांगम होगा।।
नित नव नवल कला से भूषित।
दृश्य निराल विहंगम होगा।।
जग देखेगा सिर्फ एक को।
ऐसा अप्रतिम संगम होगा।।
जग की दृष्टि बदल जायेगी।
श्रव्य मनोहर सरगम होगा।।
यह आदर्श बनेगा पावन।
जल-सरोज का अधिगम होगा।।
डूब-डूब कर थिरक-थिरक कर।
मस्त मनुज मन चमचम होगा।।
पागल द्रष्टा योगी में भी।
दिव्य काम का उद्गम होगा।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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