डॉ० रामबली मिश्र

मन मस्त है

मन मस्त है,

अरि त्रस्त है।

ग्रह पस्त है।।


मन मौन है,

तन बौन है।

धन कौन है??


मन प्यारा,

अति दुलारा।

जगत पारा।।


मन अति सरस,

न करो बहस।

खुद पर तरस।।


मन रसीला,

सुखद लीला।

बहु छवीला।।


मन निरखता,

नहिं विचलता।

मौन चलता।।


आत्मतोष,

अति संतोष।

बहु मदहोश।।


कहता नहीं,

करता सही।

चलता मही।।


ज्ञान सुंदर,

ध्यान रघुवर।

शान प्रियतर।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

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