सुनीता असीम

 यूं जिगर अपना जलाना ही न था।

पास प्रीतम को बुलाना ही न था।

*****

वो कहेंगे बेवफा हमको अगर।

लाज का घूंघट हटाना ही न था।

*****

कान्हा को मैं रिझाती क्यूं रहूँ।

वो हुआ मेरा दिवाना ही न था।

******

रास्ते में भीड़ थी भारी रही।

ये नया तेरा बहाना ही न था।

******

इस मुहब्बत में मिले धोखे कई।

दिल हजारों से लगाना ही न था।

******

हिज्र देना  है मुझे जो     सांवरे।

नींद से मुझको जगाना ही न था।

******

तिश्नगी बढ़ती चली जाती मेरी।

प्यार की मदिरा पिलाना ही न था।

******

सुनीता असीम

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...