यूं जिगर अपना जलाना ही न था।
पास प्रीतम को बुलाना ही न था।
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वो कहेंगे बेवफा हमको अगर।
लाज का घूंघट हटाना ही न था।
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कान्हा को मैं रिझाती क्यूं रहूँ।
वो हुआ मेरा दिवाना ही न था।
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रास्ते में भीड़ थी भारी रही।
ये नया तेरा बहाना ही न था।
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इस मुहब्बत में मिले धोखे कई।
दिल हजारों से लगाना ही न था।
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हिज्र देना है मुझे जो सांवरे।
नींद से मुझको जगाना ही न था।
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तिश्नगी बढ़ती चली जाती मेरी।
प्यार की मदिरा पिलाना ही न था।
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सुनीता असीम
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