सुनीता असीम

 यूं जिगर अपना जलाना ही न था।

पास प्रीतम को बुलाना ही न था।

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वो कहेंगे बेवफा हमको अगर।

लाज का घूंघट हटाना ही न था।

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कान्हा को मैं रिझाती क्यूं रहूँ।

वो हुआ मेरा दिवाना ही न था।

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रास्ते में भीड़ थी भारी रही।

ये नया तेरा बहाना ही न था।

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इस मुहब्बत में मिले धोखे कई।

दिल हजारों से लगाना ही न था।

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हिज्र देना  है मुझे जो     सांवरे।

नींद से मुझको जगाना ही न था।

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तिश्नगी बढ़ती चली जाती मेरी।

प्यार की मदिरा पिलाना ही न था।

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सुनीता असीम

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