आचार्य गोपाल जी उर्फ आजाद अकेला

उठो ! नूतन प्रभात आई है ।



सूरज की किरणे आई है ,

संग नई खुशियां लाई है,

कली कुंज में मुस्काई है,

विहग वृंद मंगल गायी है,

जग ने नवजीवन पाई है,

उठो ! नूतन प्रभात आई है ।


ठंडी-ठंडी हवा सुहानी,

चले चाल में ये मस्तानी,

नई ताजगी नई कहानी,

नया जोश है पाए प्राणी,

प्रभात शुभ बेला लाई है ,

उठो ! नूतन प्रभात आई है ।


त्यागो अपना आलस सारा,

सभी काम तब लगेगा प्यार,

देखो सुंदर  है आया नजारा,

कर्तव्य पथ ने  तुम्हें  पुकारा,

अब तो हटा दो तन-से रजाई,

उठो  !  नूतन प्रभात आई  है ।


सुबह सुहानी तेरी बन जाएगी,

स्नेह पेड़-पौधों से बढ़ जाएगी,

प्रात: टहलना, हंसना-हंसाना,

ये आदत जो तेरी डल जाएगी,

ये सुंदर सुहानी समय भाई है,

उठो ! नूतन  प्रभात आई  है ।


✍️आचार्य गोपाल जी उर्फ आजाद अकेला बरबीघा वाले

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