ग़ज़ल
उसकी बातों में ऐसा जाल रहा
उसमें फँसकर भी मैं निहाल रहा
लाख देखे हसीन मेले में
हुस्न उसका ही बेमिसाल रहा
पढ़ ही लेता है वो मेरे ग़म को
उसकी आँखों का यह कमाल रहा
जब भी आँसू कहीं गिरे मेरे
देता हरदम मुझे रुमाल रहा
तीरगी थी रह-ए-सफ़र लेकिन
बन के राहों में वो हिलाल रहा
तोड़ दीं उसने रूढ़ियाँ सारी
उसका किरदार इक मिसाल रहा
उसने देखा नहीं मुझे मुड़कर
ज़िन्दगी भर यही मलाल रहा
तोड़ वादा वो क्यों गया साग़र
आज भी उलझा यह सवाल रहा
🖋️विनय साग़र जायसवाल
हिलाल-चंद्रमा
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