"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
डॉ० रामबली मिश्र
*धर्म-ध्वज (सजल)*
धर्म ध्वजा फहराते चलना।
सबमें ऐक्य जगाते रहना।।
टूट गये हैं जितने रिश्ते।
सबको एक बनाते रहना।।
भावों में आयी विकृति को।
अतिशय दूर भगाते रहना।।
संवादों का गहरा संकट।
सबमें बात कराते रहना।।
मन बनता जा रहा अजनबी।
मनघट सहज बनाते रहना।।
कपट-वायु भर रही हॄदय में।
सबको निर्मल करते चलना।।
दंभ-द्वेष की आँधी बहती।
मन को शीतल करते रहना।।
भ्रम में जीता हर प्राणी है।
ज्ञान पंथ दिखलाते रहना।।
गहरे सबके जख्म हो रहे।
सब पर मरहम करते रहना।।
चोर, उचक्के, चाईं, लंपट।
सब को संत बनाते चलना।।
आलस अरु उन्माद खत्म कर।
श्रम-उल्लास सभी में भरना।।
धर्म पंथ है सबसे उत्तम।
सुंदर कर्म सिखाते रहना।।
रचनाकार: डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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