शिवम् कुमार त्रिपाठी 'शिवम्'

 जब ईश्वर नव निर्माण कर रहा था

किन्हीं के सपनों को साकार कर रहा था

वह नन्हा जीव था अचंभित

भविष्य को लेकर था चिंतित

पूछ ही डाला विचलित होकर

आगम से भयभीत होकर

"कुछ तो डाला होगा व्यवधान

क्षमा करो हे पिता महान

आपके शरण में था भगवान

फिर क्यों बना रहे मुझे इंसान"


ईश्वर मुस्कुराये

अबोध मन पर हर्षाये

फिर दिखाकर अपना हृदय विराट

बोले "मत हो अधीर, सुनो तात!

जब धरा पर तुम्हारा अवतरण होगा।

हर पथ पर मुझसे मिलन होगा

पर तुम मोह-माया में खो जाओगे

क्या तुम मुझे पहचान पाओगे?"


सुनकर थोड़ा ठिठका वह मन

पूछ बैठा यह यक्ष प्रश्न

"मुझ तुच्छ पर थोड़ी कृपा करें

बतलायें कैसे पता करें?

किस पथ पर मिलेंगे आप

आपको भूल जाऊँगा कैसा यह श्राप

जैसे बिन माली कलियाँ कुमल्हा जाती

बिन दीपक क्या करे बाती"


अबोध मन की सुनकर जिज्ञासा

त्रिलोकपति ने दिया दिलासा

"जिस गोद में तुम आँखे खोलोगे

जिस माता-पिता से अपना दुख बोलोगे

उनमें मेरा ही अंश होगा

जो तुझे नैतिक ज्ञान से समर्थ करेगा

माता हैं धरती से बढ़कर

पिता अंतरिक्ष से हैं विशाल

तुम्हारी उन्नति ही जिनका लक्ष्य

ममता जिनकी तुमपर निढाल

मित्र, सखा में भी रहूंगा

पुष्प, शाखाओं में भी दिखूंगा

जब बाल्य अवस्था में जाओगे

तो मेरे बृहद रूप से मिल पाओगे

मेरे इस अवतार को कहते गुरू

जीवन ज्ञान जिनसे है शुरू

वो जो सच्चा पथ प्रदर्शक

जीवनवृत्त जिनका सबसे आकर्षक

भाषा का ज्ञान कराएंगे

गणना-विज्ञान सिखाएंगे

तू देख सकेगा मुझे प्रत्यक्ष

कला कौशल में होगा दक्ष

इनका तुझपे होगा ऋण

जीवन तेरा होगा सुदृढ़"


मुग्ध जीव को हुआ चिंतन

"बोला प्रभु मैं हूँ अकिंचन

मात-पिता, गुरू का उपकार

कैसे चुकाऊंगा यह ऋण अपार"


बोले प्रभु सुन हे प्राण

"कभी ना करना तुम अभिमान

सदा बड़ो का करना सम्मान

उनका सदैव रखना तुम ध्यान"


यह सुनकर जीव हरषाया

करकमलों में शीश नवाया

माता-पिता गुरू के रूप में

ईश्वर हैं हर छाँव व धूप में।



   - शिवम् कुमार त्रिपाठी 'शिवम्'

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