गाओ मिल कर गीत प्रभात के
आशा की नई कुतूहल में
उठ जाओ सुप्रभात बेला में
अब आलस को दूर भगाओ,
विधि ने रच दी सुन्दर काया
धरती पर स्वर्ग बसाने की
गाओ मिल कर गीत प्रभात के।
उपवन में गूंजे लय तंरग
चिडिय़ा भी गाने लगी है
मस्ती में बहते मन्द पवन
भौरे भी गुनगुनाने लगे है
फूलों की खूशबू भी फैली
कोयल भी अब कूक रही है
गाओ मिलकर गीत प्रभात के।
धरती की सोंधी माटी में
फसलें कितनी लहरायी है
तितलियों का झुंड आ गया
कितनी मतवाली लगती है
वसुधा पर झलके सुधा बिन्दु
तरु पल्लव तब मुस्कात है
गाओ मिल कर गीत प्रभात के।
★★★★★★★★★★
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड
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