*सुबह-शाम*
सुबह-शाम दर्शन किया मैं करूँगा।
दर पर तुम्हारे खड़ा ही रहूँगा।।
इबादत करूँगा मैं करवद्ध हो कर ।
मिलने की खातिर पड़ा ही रहूँगा।।
तरसती ये आँखें हैं व्यकुल हृदय है।
पाने को दर्शन तड़पता रहूँगा।।
तरसना ही मेरी नियति में लिखा है।
आशा की गंगा में बहता रहूँगा।।
पाना असंभव की दरिया का आँचल।
हॄदय जीतने मैं कोशिश करूँगा ।।
आँखों में आँसू के थक्के जमे हैं।
नरम दिल से दिल को लुभाता रहूँगा।।
जन्मों की मंशा अधूरी अभी तक।
अधूरे को पुरा मैं करता रहूँगा।।
चलूँगा दिलेरी का झंडा लिये कर।
हाथों से उँगली पकड़ कर चलूँगा।।
बहुत याद तेरी मुझे आ रही है।
मंदिर पर तेरे टहलता रहूँगा।।
नहीं दोगे दर्शन भला कैसे प्यारे?
दिल में तुम्हारे उतरता रहूँगा।।
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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