*कहानी।*
*रचयिता।एस के कपूर "श्री हंस'*
*बरेली।।*
*शीर्षक।। रिश्ते बड़े या पैसा।।*
राम और रीमा के मध्य और दिनों की
अपेक्षा कुछ अधिक झगड़ा हो रहा था।राम ने बताया था कि माँ कौशल्या देवी अब वृद्धा आश्रम छोड कर घर आ रही हैं।अचानक क्यों आ रही हैं पता नहीं।
तभी माँ कौशल्या देवी का आगमन हो गया। सभी ने उनके चरण स्पर्श किये और संबको आशीर्वाद दिया लेकिन बहु रीमा दूर खड़ी घूर रही थी और फिर तुनक कर बोली कि आ गई हमारी छाती पर मूंग दलने के लिए।वहां आराम से रह रही थी और हमारी छोटी सी गृहस्थी तुम घुसने आ गई।
माँ शान्ति पूर्वक सुन रही थी ।माँ ने तत्काल वकील को फोन किया कि कागज़ ले कर आ जायो।वकील साहब तुरंत आ गए और बोले कि आप के कहे अनुसार 1 करोड़ रुपये जो आप पति की मृत्यु के बाद कोर्ट के आर्डर से जो मिला वह आपके बेटे राम के नाम कर दिया है।कौशल्या देवी ने कागज़ हाथ में लिए और तुरंत फाड़ दिए।
कुछ देर शांत रही और बोली सुबह काशी जा रही हूं और लौट कर आनंदी और आनन्द ( बेटी और दामाद) के यहाँ जाऊँगी ।वह लोग कबसे जोर दे रहे हैं लेकिन मैंने ही कहा था कि बेटे के यहां अंतिम समय निकले और बेटे के हाथ मुखाग्नि से मोक्ष प्राप्त होता है लेकिन मुझको अब यह बात व्यर्थ लग रही है।मेरी चिन्ता करने की जरूरत नहीं है और सुबह तक की बात है।मैं सोने जा रही हूँ और चली गई और बेटा बहू बच्चे अवाक शून्य समान देखते रह गए।
*संदेश।निष्कर्ष।*
*हमेशा अपने रिश्तों को अहमियत देनी चाहिए और केवल स्वार्थ वश रिश्ता न रखें। जान लीजिए कि संबंध बनाने चाहिय ।यह सदैव काम आते हैं और चाहे घर छोटा हो पर दिल बड़ा होना चाहिए।अंतिम बात कि माता पिता की सेवा से बढ़ कर अन्य कोई पूजा नहीं होती है।*
*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस*"
*बरेली।।*
मोब।। 9897071046
8218685464
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