सलाह
जहां आदर नहीं, वहां जाना मत
जो सुनता नहीं,उसे समझाना मत
जो पचता नहीं,उसे खाना मत और
जो सत्य पर भी रूठे,उसे मनाना मत
तीन लोक में तुम्हारा वास
काहे को फिरत उदास
यदि सुनता नहीं तेरा कोई तो
जबरदस्ती सुनाना भी है पाप
अपना रूप पहचान रे मन
यही तो दर्शन है भगवान का
जैसे कस्तूरी बसे मृग के माही
फिर भी बन बन ढूंढे,सुंघे जाही
जहां आदर नहीं, वहां जाना मत
भेद भरम अगर रहें न कोई
तो दुःख सुख जग में न ब्यापे
ब्रम्ह ही ब्रम्ह हर जगह समाया
ब्रम्ह ही ब्रम्ह में तू गोता लगा ले
दुनिया का मेला है,रंगो से भरा
भीड़ में कहीं खो न जाना
ज्ञान के निर्मल जल से
भवसागर पार हो जायेगा
जो सुनता नहीं,उसे समझाना मत
ऋतु आयेगी,ऋतु जायेगी
जीवन में भक्ति की धारा,बारह मास हो
प्रभु जी के चरण में, सिर झुका रहें हर घड़ी
जब तक एक भी स्वांस हो
जहां आदर नहीं, वहां जाना मत
जो सुनता नहीं,उसे समझाना मत
जो पचता नहीं,उसे खाना मत और
जो सत्य पर भी रूठे,उसे मनाना मत
नूतन लाल साहू
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