*मेरी अभिनव मधुशाला*
बना आज उत्तर है प्याला, सहज उत्तरित है हाला;
प्याले की हाला को पीकर,मस्ताना पीनेवाला;
साकी की है अदा अनोखी, सबको पात्र समझता है;
निर्विकार निर्लिप्त भावमय, मेरी अभिनव मधुशाला।
प्याले को निर्जीव न मानो, अर्थपूर्ण भावुक प्याला;
भावभंगिमा की मादकता , से सज्जित मधुरिम हाला;
साकी पावन सत्व भाव में, घूम रहा है जन-जन तक;
देवलोक के प्रांगण में नित, सहज दिव्यमय मधुशाला।
प्रेम परस्पर का उपदेशक, है मेरा बौद्धिक प्याला;
प्रीति दीवानी बनी हुई है, मेरी आराध्या हाला;
प्रेम-प्रीति के प्रिय संगम पर, खड़ा सुघर शिव साकी है.,
बनी हुई है प्रणय मण्डली, मेरी अभिनव मधुशाला।
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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