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एस के कपूर श्री हंस
*।।रचना शीर्षक।।*
*।।डूबती नाव यूँ संभाल ली*
*मैंने।। बिगड़ी जिन्दगी यूँ संवार*
*ली मैंने।।*
जिन्दगी कुछ ऐसी चली कि
सारे सवाल बदल डाले।
फिर वक्त की आंधी ने सारे
ही जवाब बदल डाले।।
हमनें भी डाल दिया लंगर
तूफानों के बीच में।
हौसलों ने सारे हमारे बुरे
हालात बदल डाले।।
जिन्दगी जो शेष थी उसे
हमनें विशेष बनाया।
निष्क्रियता का जीवन में
अवशेष मिटाया।।
केवल कर्म की सक्रियता
को अपनाया हमनें।
घृणा, ईर्ष्या, राग, विद्वेष
को हमनें दूर भगाया।।
जीवन में फूल ही बस चुने
काँटों को निकाल कर।
हर संतुलन को तोला हमनें
बांटों को निकाल कर।।
जिन्दगी को सवाल नहीं
जवाब बनाया हमनें।
प्रेम बगिया बनाया मन से
चांटों को निकाल कर।।
चमत्कार से विश्वास नहीं पर
विश्वास से चमत्कार करा।
झुका कर आसमाँ को भी
नतीज़ों का इंतज़ार करा।।
धैर्य और परिश्रम से धुंधली
तस्वीर में रंग भरा नया।
हारी हुईं बाज़ी पर भी हमनें
जीत का अख्तियार करा।।
*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस*"
*बरेली।।।*
मोब।। 9897071046
821868 5464
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