डा.नीलम

 रवि आगमन

रजत शिखर पर

बिछी स्वर्णिम रज

कहीं श्यामल पार्स्व

सज रहे

पूरब से धीरे-धीरे

रवि ,रथ पर चढ़ कर

आ रहा

कपासी चादर तले

प्रकृति अंगड़ाई

लेने लगी

छोडृ कर 

नीड़ में नन्हें छोने

परिंदे कलरव करते

अनजाने आकाश

छूने निकल पड़े

पियूष मोतियों से

सज्जित कलिकाएं

भी मुस्काने लगीं

भीगी-भीगी सी धरा

दौड़-भाग कर

कर्म में रत् होने लगी।


        डा.नीलम

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