"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
सुनीता असीम
वो हुआ क्यूं नहीं हमारा भी।
जबकि हमने किया इशारा भी।
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छोड़कर वो चला गया हमको।
कर्ज दिल का नहीं उतारा भी।
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कुछ बला की रही अकड़ उनमें।
वापसी में नहीं निहारा भी।
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वो हमें क्यूँ नहीं समझते हैं।
उन बिना है नहीं गुजारा भी।
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दिल नहीं ले रहे न ही देते।
उनसे कैसे करें ख़सारा भी।
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इक अरज कर रही सुनीता है।
कृष्ण दे दो ज़रा सहारा भी।
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सुनीता असीम
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