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सुनीता असीम
वो हुआ क्यूं नहीं हमारा भी।
जबकि हमने किया इशारा भी।
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छोड़कर वो चला गया हमको।
कर्ज दिल का नहीं उतारा भी।
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कुछ बला की रही अकड़ उनमें।
वापसी में नहीं निहारा भी।
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वो हमें क्यूँ नहीं समझते हैं।
उन बिना है नहीं गुजारा भी।
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दिल नहीं ले रहे न ही देते।
उनसे कैसे करें ख़सारा भी।
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इक अरज कर रही सुनीता है।
कृष्ण दे दो ज़रा सहारा भी।
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सुनीता असीम
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