डॉ० रामबली मिश्र

 जलनेवाले (चौपाई)


जलनेवाले को जलने दो।

मुझको सुंदर ही रहने दो।।


जो जलता, वह देत प्रकाशा।

पहुँचा देता है आकाशा।।


जलकर होता खाक स्वयं ही।

मरता है दिन-रात स्वयं ही।।


बिना मौत के मौत बुलाता।

है यमराज पास में आता।।


बात-बात में जलता रहता।

टेढ़ी बोली बोला करता।।


कुंठाग्रस्त सदा दिखता है।

गंदा खेल किया करता है।।


क्षति पहुँचाने की फिराक में।

मन रहता नापाक काम में।।


घटिया बात सदा करता है।

तुच्छ नीच हरकत करता है।।


लुच्चा मन कसरत करता है।

प्रगति देख नफरत करता है।।


झूठ बोलता चोरी करता।

खुद को अच्छा मानुष कहता।।


देख परायी खुशी ऐंठता।

ज्वलनशील उर- गेह बैठता।।


प्रति पल प्रति क्षण जलता चलता।

काला चेहरा लिये टहलता।।


भाग्यहीन यह दुःख दानव है।

स्तरहीन निकृष्ट मानव है।।


अपमानित जीवन जीता है।

तिरस्कार का मय पीता है।।


सबसे उत्तम है वह भाई।

करत-रहत जो जगत भलाई।।


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

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