ग़ज़ल--
हम उन्हीं को सलाम करते हैं
लोग जो एहतराम करते हैं
लब पे लाली लगा के वो हरदिन
मेरा जीना हराम करते हैं
उनपे लाखों करोड़ों शेर कहे
उनसे हम यूँ कलाम करते हैं
तू ही तू बस रहे ख़यालों में
ऐसा कुछ इंतज़ाम करते हैं
दीन दुनिया के ख़ौफ से बचकर
मैकदे में ही शाम करते हैं
इससे बेहतर भी और क्या होगा
उनको दिल में क़याम करते हैं
चढ़ ही जाता सुरूर है *साग़र*
आप जब पेश जाम करते हैं
मौज दुनिया की छोड़ कर *साग़र*
अब चलो राम राम करते हैं
🖋️विनय साग़र जायसवाल
कलाम-बातचीत ,वार्तालाप
क़याम -ठहरना , ,ठिकाना
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