"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
▼
डॉ० रामबली मिश्र
*चोरों की बस्ती में...(ग़ज़ल)*
चोरों की बस्ती में घर ले लिया है।
संकट को न्योता स्वयं दे दिया है।।
नहीं जानता था ये चोरकट हैं इतने।
पसीना बहाकर लहू दे दिया है।।
पूछा न समझा कि बस्ती है कैसी?
अज्ञानता में ये क्या कर दिया है??
दमड़ी की हड़िया भी लेनी अगर है।
मानव ने ठोका ,बजाकर लिया है।।
हुई चूक कैसे नहीं कुछ पता है।
बिना जाने कैसे ये क्या हो गया है??
पछतावा होता बहुत है समझ कर।
पछतावा से किसको क्या मिल गया है??
उड़ी चैन की नींद दिन-रैन जगना।
चोरों से बचना कठिन हो गया है।।
क्या-क्या करे बंद कमरे के भीतर।
बाहर का सब चट-सफा हो गया है।।
झाड़ू तक बचती नहीं यदि है बाहर।
गैया का गोबर दफा हो गया है।।
चोरों की बस्ती का मत पूछ हालत।
अपना है उतना ही जो बच गया है।।
रचनाकार:डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
अखिल विश्व काव्यरंगोली परिवार में आप का स्वागत है सीधे जुड़ने हेतु सम्पर्क करें 9919256950, 9450433511