*आइये....(ग़ज़ल)*
आइये दिखाइये अब गगन प्यार का।
चाहता हूँ देखना मैं मगन यार का।।
आइये सुनाइये अब प्यार के भजन।
पूछिये कुछ हाल-चाल मजेदार का।।
होइयेगा गुम नहीं कभी भी भूलकर।
आइये आलोक बनकर इंतजार का।।
कीजिये वफा सदा कसम है प्यार का।
कीजिये सम्मान सदा वफादार का।।
प्यार को ईश्वर समझकर पूजिये सदा।
ईश की कसम में छिपा कसम प्यार का।।
प्यार के एहसान को न भूलना कभी।
मस्त-मस्त चीज है हृदय है प्यार का।।
प्यार को टुकड़ों में कभी देखना नहीं।
समग्रता की नींव पर है जिस्म प्यार का।।
प्यार में ही जाइये बहते हुये सदा।
आइये मनाइये नित पर्व प्यार का।
डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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