रवि रश्मि 'अनुभूति

ज़िंदगी अधूरी है  

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कदम - दर - कदम बढ़ते रहे आगे बढ़ना ज़रूरी है .....

पाँव के छालों को देख सोचा मंज़िल की अभी दूरी है .....


अरमानों की सदा सजाते ही रहे कई डोलियाँ हम तो 

पीछे मुड़ अभी तो कमी देखी ढेरी तो अभी घूरी है .....


सपने जो देखते ही रहे मिले तो पूर्णता पाने के 

क्या करें पूरे करें कैसे ज़ख़्म मिले अभी मजबूरी है .....


काँटों भरी राहों पर तुम भी तो निकल ही गये बहुत दूर    

दर्द - ए - दिल भी बढ़ता गया कि ज़िंदगी तुम बिन अधूरी है .....


सुबकते - सिसकते गये हम सुख पाने की ही ख़ातिर अब तक 

किया बर्बाद अपना यही हुस्न रहा जो अब तक नूरी है .....


झेले हैं हमने कितने ही झंझावात संघर्षों में ही 

करती जो न्याय अपनी किस्मत का कौन - सी यहाँ जूरी है .....


कौन - सा किया हासिल बेतहाशा वैभव तभी खटते रहे  

अभी तो ज़िंदगी अधूरी पल्ले पड़ी सिर्फ़ मज़दूरी है .....


अंतिम यह पड़ाव थके पाँव मिलन की ख़्वाहिश रही अब तो 

मिलें रहें एक साथ अब तो यह ज़िंदगी होती पूरी है .....


ये चाहतें , ये ख़्वाहिशें, ये अरमां भले रहे कसक भरे  

सच तो यही है कि ज़िंदगी में सबसे बड़ा सब्र सबूरी है .....

(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '

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