*।।रचना शीर्षक।।*
*।।अनमोल है रिश्तों की सौगात,*
*इन्हें रखो संभाल कर।।*
अहम और वहम मानो तो
रिश्तों की आरी है।
जिद्द और मुकाबला रिश्ते
हारने की तैयारी है।।
अपनेपन ओअहसास में बसा
जीवन रिश्तों का।
झूठे रिश्ते स्वार्थ में मुफ्त
की सवारी है।।
दिल समुन्दर रखो कि नदी
खुद मिलने आयेगी।
एक दूजे के सम्मान से ही
दोस्ती खिलने पायेगी।।
मत तुलना करते रहें दुःख का
कारण बनती है।
मन में ईर्ष्या तो जरूर दोस्ती
टूटने को जायेगी।।
रिश्ते जिये जाते हैं और रिश्ते
निभाये जाते हैं।
खुद हार कर भी कभी रिश्ते
जिताये जाते हैं।।
जहर यूँ नहीं घुलता एक बार
में जाकर कहीं।
नासमझी में तिल तिल रिश्ते
तुड़वाये जाते हैं।।
*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।*
मोब।।। 9897071046
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