डॉ० रामबली मिश्र

 *नजरें चुरा कर ...(ग़ज़ल)*


नजरें चुरा कर चले जा रहे हो।

मुझको पता है कहाँ जा रहे हो।।


अब तक वफा की दुहाई थे देते।

हुआ क्या जो अब बेवफा हो रहे हो।


मंजिल मिलेगी नहीं यह समझ लो।

मंजिल की खातिर दफा हो रहे हो।।


मंजिल बदलने का मतलब दुःखद है।

मंजिल बदलकर बुरा कर रहे हो।।


करो जो लगे तुमको अच्छा सुहाना।

दुखा दिल किसी का ये क्या कर रहे हो??


नखरे-नजाकत दिखाकर बहुत ही।

निगाहें छिपा अब चले जा रहे हो।।


गलती इधर से हुई क्या बता दो?

वफा को बेईज्जत किये जा रहे हो।।


मासूम का क्यों तुम बनते हो कातिल।

निहत्थे की हत्या किये जा रहे हो।।


कोमल कली को मसल कर जमीं पर।

बेरहमी से फेंके चले जा रहे हो।।


मुस्कराती कली आज मूर्छित पड़ी है।

तुम मुस्कराये चले जा रहे हो।।


 एहसान तेरा भुलाना कठिन है।

दिल को रुला कर चले जा रहे हो।।


रचनाकार:डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

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