मधु शंखधर स्वतंत्र प्रयागराज

सुप्रभात *मधु के मधुमय मुक्तक *मदद* मदद किए हनुमान जी, सीता जी को खोज। राम राज को देखकर, हिय में बसता ओज। मदद भावना से बने, मानव ईश समान, इसी भाव से मिल सके, भूखे जन को भोज।। मदद ह्रदय से दीन की, सच्चा है इक दान। सहज ह्रदय से वह धरे,इस जीवन का मान। दूजों का दुख देख के, जो जन विचलित होय, ईश्वर की संतान वो, वो ही हैं इंसान।। मदद भाव से जो भरा, उसका ही सम्मान। सहयोगी मस्तिष्क में, सतत साधना ध्यान। पूर्ण वही व्यक्तित्व है, भावपूर्ण जो मूल, महापुरुष वह बन सके, पा समाज से मान।। शहर जला कर देखते, धुँआ उठा किस ओर। स्वयं चाहते बैर बस, करे व्यर्थ में शोर। एक लिए संकल्प जो, मदद भावना दीन, वही मनुज बस श्रेष्ठ हैं, रात्रि साथ *मधु* भोर।। *मधु शंखधर स्वतंत्र* *प्रयागराज*

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