*फिर याद तुम्हारी आई है*
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गुनगुनी धूप जब निकली
मौसम सुहावना हो गया,
ठंडक का अहसास भी
अब कम होने लगा,
फिजाँ का रंग ही बदल गया
फिर याद तुम्हारी आई है।
आसमान में इन्द्र धनुष
गिरी बूँ गगन से जब,
उठी लपटें अगन से तब
मौसम बदलने लगा तब,
जैसे घटा में शंक बज रहे हो
फिर याद तुम्हारी आई है।
फिर उड़ी जुल्फें घनेरी
फिर घिरी बदरी अँधेरी,
फिर मौसम में रंग छा गये
देखो प्रकृति का नाजारा,
इस बदले बदले रुप क़ो,
इस सुहानी घंडी में
फिर याद तुम्हारी आई है।
पेडों के झुरमुठ के बीच
जीवन का परम आनन्द है,
ऐसा सुहावना मौसम में
मदहोश होने के लिए,
पल भर में आराम यहां है
फिर याद तुम्हारी आई है।
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कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड
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