एस के कपूर श्री हंस

 *।।क्यों मुझको पसंद है संस्था*

*काव्य रंगोली।।*

*((काव्य रंगोली लखीमपुर )पटल व संस्था*

*की विशिष्टता पर आधारित*

*मेरी रचना।)*


रंग रंग बिखरे हैँ   साहित्य

के     जहाँ    पर।

नित प्रतिदिन    नव सृजन

होता    वहाँ   पर।।

सुविख्यात काव्य   रंगोली

संस्था कहलाती वो।

रचनाकारों  का      सम्मान

होता    यहाँ     पर।।


जिला स्थान  छोटा ही सही

दिल बहुत बड़ा है।

हर पदाधिकारी  स्वागत को

आतुर      खड़ा है।।

हर उत्सव पटल    मनाता है

हर्षोल्लास        से।

कविता रंग   यहाँ हर  किसी

पर    चढ़ा       है।।


व्यवस्था  व  अनुशासन यहाँ

के प्रमुख   मापदंड हैं।

सहयोग व  सहभागिता  यहाँ

के मुख्य  मानदंड   हैँ।।

सीखने और सीखाने का क्रम

रहता यहाँ निरंतर जारी।

प्रतियोगिता  आयोजन संस्था

के मुख्य    मेरुदंड   है।।


भांति भांति के  रंग   मिलकर

बन गई है काव्य रंगोली।

प्रत्येक सिद्ध साहित्यकार की

यह तो    है   हमजोली।।

कविता लेख कहानी   हैं तरह

तरह        के           रंग।

आज उत्तर भारत की हर जुबाँ

की बन गई ये मुँहबोली।।


*रचयिता।।एस के कपूर 'श्री हंस"*

*बरेली।।।*

मोब।।।           9897071046

                      8218685464

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