प्रीत
कैसी अनोखी पिया
तेरी मेरी बातें
आंखों ही आंखों में
कटती हैं रातें
मिली है रब से मुझको
तेरी प्रीत की सौगातें
कितनी प्यारी अपनी
साजन ये मिलन की रातें
मुझको मिली है......
रब्बा नज़र न लग जाए
किसी की
दुनियां बैठी नज़र गढ़ाए
न कर दे घातें
मुझको मिली..........
निगाहों ही निगाहों में
युग यूं बीते
ज्यों चुटकी में बन जाए बातें
तन-मन के मिलन से
हवाओं -में घुल रही थी सांसें
मुझको मिली है.. .......
डा.नीलम
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