दर्शन दो घन श्याम मुझे तुम , सुधा रस अब तो पिला दो ।
हृदय में बस कर आज प्रभु तुम , दिल का फूल खिला दो ।।
डगमग मेरी नैया डोले , दे दो अभी तो सहारा ।
हाथ पकड़ कर पार लगाओ , मिल जाये मुझे किनारा ।।
सँवरे अब तो जीवन मेरा , दाँव लगाया है मैंने ।
मानुष जीवन पाया है जो , व्यर्थ गँवाया है मैंने ।।
अब शरण तुम्हारी आकर ही , दर्शन की है प्यास लगी ।
तुम बिन जीवन सूना है जो , बस चरणों की आस जगी ।।
कर दो प्रकाश ज्ञान का अब , मेरा तुम तो हाथ गहो ।
आशीष मुझे दो हे प्रभु तुम , दोगे अब तो साथ कहो ।।
(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '
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