~~~सरस्वती वंदना~~~
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*माँ मुझे ऐसा वर दे दो*
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वर दे वरदायिनी वर दे,
मैं काव्य का पथिक बन जाऊँ,
थोड़ी सी कविता माँ मैं लिख पाऊँ,
भावों की लड़ियों को गूँथू,
इस कविता रुपी माला से,
मैं भी अभिसिंचित हो जाऊँ।
सबके हित की बात लिखू मैं,
बाहर -भीतर एक दिखूँ मैं,
हृदय में आकर बस जाओ,
नेह राह पर चलू मैं नित,
मात अकिंचन का नमन स्वीकार करो,
जीवन में भर दो अतुलित प्यार।
मुक्त भावों के गगन में उड़ सकूं,
निर्मल मन से हर किसी से जुड़ सकूं,
मुक्त कर दो मेरे हृदय के दोषों को,
दम्भ, छल, मद, मोह -माया दोषो से,
व्योम सा निश्चल हृदय विस्तार दो,
माँ मुझे ऐसा वर दे दो।
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कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड
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