"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
सुनीता असीम
अगर नफरत रही तो प्यार भी है।
निगाहे यार में इकरार भी है।
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विरह की आग में जलती है काया।
मिलन अपना बड़ा दुश्वार भी है।
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नज़र हमसे सदा क्यूँ फेर लेते।
मुहब्बत का किया इज़हार भी है।
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ज़रा सी चूड़ियां हमको दिला दो।
बिरज में रंग का त्यौहार भी है।
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निराला है कन्हैया नन्द जू का।
कभी सीधा कभी पुरकार भी है।
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वही है आस जीने की हमारी।
वही साकार प्राणाधार भी है।
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इशारे से सुनीता को बता दो।
जुड़ा उसका तुम्हारा तार भी है।
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सुनीता असीम
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