ग़ज़ल
दिल का वो मोतबर नहीं होता
तो मेरा हमसफ़र नहीं होता
गुफ्तगू उनसे जब भी होती है
होश शाम-ओ-सहर नहीं होता
राह लगती तवील है उस दम
जब वो जान-ए-जिगर नहीं होता
संग दिल है मियाँ हमारा सनम
वो इधर से उधर नहीं होता
जुस्तजू उसकी गर नहीं होती
मैं कभी दर ब दर नहीं होता
ढूँढ लेता मैं अपनी ख़ुद मंज़िल
साथ गर राहबर नहीं होता
दर्द उस पल बहुत अखरता है
पास जब चारागर नहीं होता
ज़िन्दगी उसको बोझ लगती है
जिस पे कोई हुनर नहीं होता
अब तो साग़र चले भी आओ तुम
मुझसे तन्हा गुज़र नहीं होता
विनय साग़र जायसवाल
19/12/2020
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