डॉ० रामबली मिश्र

 *प्यार आपका..(चौपाई)*


प्यार आपका दिव्य प्रसादा।

 सहज  शांतिपूर्णअपवादा।।


दिल करुणा का गहरा सागर।

दयापूर्ण भाव का नागर।।


परम प्रसन्न वदन मनमोहक।

वाणी में अमृत रस बोधक।।


नयनों में प्रेमाश्रु समाया।

बात-बात में रस बरसाया।।


अधरों पर है प्रेम कहानी।

सहज भावना की रसखानी।।


मन में उत्तम भाव उमंगा।

वचन-लहर में दिखतीं गंगा।।


अति श्रद्धेय सदा कल्याणी।

दिव्य ज्ञानमय अमृत वाणी।।


सबके उर में बैठे गाते।

मानवता का पाठ पढ़ाते।।


बने हिलोरे मार रहे हो।

प्रेम गीत को सुना रहे हो।।


अति महनीय महंत महाशय।

अति सुंदर वाक्यों के आशय।।


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801



*कैसे मैं...*

*(सजल)*


कैसे मैं खुद को समझाऊँ?

विरह गीत कैसे मैं गाऊँ??


टीस बहुत है मेरे मन में।

कैसे मैं जग को अपनाऊँ??


कदम-कदम पर मिले थपेड़े।

कैसे मैं खुद को बहलाऊँ??


धोखा खाता चला आ रहा।

क्या इसका डंका पिटवाऊँ??


खत्म हो गई सारी क्षमता।

कैसे मन को आज मनाऊँ??


नफरत ने कुचला है मुझको।

कैसे पावन प्रीति निभाऊं??


दल-दल में फँस गये पाँव हैं।

बतला कैसे पैर चलाऊँ??


तोड़ चुके विश्वास बहुत से।

फिर कैसे विश्वास जमाऊँ??


ईर्ष्या -द्वेष भरा है सब में।

कैसे जीवन पर्व मनाऊँ??


अब तो बस है यही सोचना।

स्वयं स्वयं को शीश नवाऊँ।।


नहीं सोचना कभी अन्यथा।

केवल अपने में खो जाऊँ।।


रचनाकार:डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

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